परंपरा -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो।
परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो।
उसमे बहुत कुछ है,
उसमें बहुत कुछ है,
जो जीवित है,
जो जीवित है,
जीवन दायक है,
जीवनदायक है,
जैसे भी हो,
जैसे भी हो,
ध्वसं से बचा रखने लायक है।
ध्वसं से बचा रखने लायक है।


पानी का छिछला होकर
पानी का छिछला होकर
समतल मे दोडना,
समतल में दौड़ना,
यह क्रंनति का नाम है।  
यह क्रांति का नाम है।  
लेकिन घाट बँआनधकर
लेकिन घाट बाँधकर
पानि को गहरा बनाना
पानी को गहरा बनाना
यह पुरमपरा का नाम है।
यह परम्परा का नाम है।


पंरपरा और क्रंनति में
पंरपरा और क्रांति में
संघषऋ चलने दो।  
संघर्ष चलने दो।  
आग लगि है, तो
आग लगी है, तो
सूखि डालो को जलने दो।
सूखी डालो को जलने दो।


मगर जो डालें
मगर जो डालें
आज भी हरि है ,
आज भी हरी है,
उनपर तो तरस खाओ।  
उन पर तो तरस खाओ।  
मेरि एक बात तुमा मान लो।
मेरी एक बात तुम मान लो।


लोगो कि असथा के अधार
लोगों की आस्था के आधार
टुट जाते है,
टूट जाते हैं,
उखडे हुए पेड़ो के समान
उखड़े हुए पेड़ो के समान
वे अपनि ज़डो से छुट जाते है।
वे अपनी ज़डो से छूट जाते हैं।


परुमपरा जब लुपत होति हैं
परम्परा जब लुप्त होती है
सभयता अकेलेपन के
सभ्यता अकेलेपन के
दर्द मे मरति है।  
दर्द में मरती है।  
कलमे लगना जानते हो,
कलमें लगना जानते हो,
तो जरुर लगाओ,
तो जरुर लगाओ,
मगर ऐसी कि फ़लो मे
मगर ऐसी कि फलों में
अपनि मिट्टी का सवाद रहे।
अपनी मिट्टी का स्वाद रहे।


और ये बात याद रहे
और ये बात याद रहे
परुमपरा चिनि नहि मधु है।
परम्परा चीनी नहीं मधु है।
वह न तो हिन्दू है, ना मुसलिम  
वह न तो हिन्दू है, ना मुस्लिम....  
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Revision as of 11:55, 22 August 2011

परंपरा -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो।
उसमें बहुत कुछ है,
जो जीवित है,
जीवनदायक है,
जैसे भी हो,
ध्वसं से बचा रखने लायक है।

पानी का छिछला होकर
समतल में दौड़ना,
यह क्रांति का नाम है।
लेकिन घाट बाँधकर
पानी को गहरा बनाना
यह परम्परा का नाम है।

पंरपरा और क्रांति में
संघर्ष चलने दो।
आग लगी है, तो
सूखी डालो को जलने दो।

मगर जो डालें
आज भी हरी है,
उन पर तो तरस खाओ।
मेरी एक बात तुम मान लो।

लोगों की आस्था के आधार
टूट जाते हैं,
उखड़े हुए पेड़ो के समान
वे अपनी ज़डो से छूट जाते हैं।

परम्परा जब लुप्त होती है
सभ्यता अकेलेपन के
दर्द में मरती है।
कलमें लगना जानते हो,
तो जरुर लगाओ,
मगर ऐसी कि फलों में
अपनी मिट्टी का स्वाद रहे।

और ये बात याद रहे
परम्परा चीनी नहीं मधु है।
वह न तो हिन्दू है, ना मुस्लिम....

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