यह मंदिर का दीप -महादेवी वर्मा: Difference between revisions

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यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती वेला को शत-शत लय से भर,
गये आरती बेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
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प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेदय अपरिमित
धूप-अर्घ्य नैवेद्य अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!
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तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
रेखाओं में भर आभा-जल
रेखाओं में भर आभा-जल
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!</poem>
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!
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Revision as of 06:47, 23 August 2011

यह मंदिर का दीप -महादेवी वर्मा
कवि महादेवी वर्मा
जन्म 26 मार्च, 1907
जन्म स्थान फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 22 सितम्बर, 1987
मृत्यु स्थान प्रयाग, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ 'मेरा परिवार', 'स्मृति की रेखाएँ', 'पथ के साथी', 'शृंखला की कड़ियाँ', 'अतीत के चलचित्र', नीरजा, नीहार
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
महादेवी वर्मा की रचनाएँ

यह मन्दिर का दीप इसे नीरव जलने दो
रजत शंख घड़ियाल स्वर्ण वंशी-वीणा-स्वर,
गये आरती बेला को शत-शत लय से भर,
जब था कल कंठो का मेला,
विहंसे उपल तिमिर था खेला,
अब मन्दिर में इष्ट अकेला,
इसे अजिर का शून्य गलाने को गलने दो!

चरणों से चिन्हित अलिन्द की भूमि सुनहली,
प्रणत शिरों के अंक लिये चन्दन की दहली,
झर सुमन बिखरे अक्षत सित,
धूप-अर्घ्य नैवेद्य अपरिमित
तम में सब होंगे अन्तर्हित,
सबकी अर्चित कथा इसी लौ में पलने दो!

पल के मनके फेर पुजारी विश्व सो गया,
प्रतिध्वनि का इतिहास प्रस्तरों बीच खो गया,
सांसों की समाधि सा जीवन,
मसि-सागर का पंथ गया बन
रुका मुखर कण-कण स्पंदन,
इस ज्वाला में प्राण-रूप फिर से ढलने दो!

झंझा है दिग्भ्रान्त रात की मूर्छा गहरी
आज पुजारी बने, ज्योति का यह लघु प्रहरी,
जब तक लौटे दिन की हलचल,
तब तक यह जागेगा प्रतिपल,
रेखाओं में भर आभा-जल
दूत सांझ का इसे प्रभाती तक चलने दो!

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