गुरदीन पांडे: Difference between revisions

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Latest revision as of 09:47, 14 October 2011

  • गुरदीन पांडे के संबंध में कुछ ज्ञात नहीं है।
  • इन्होंने संवत 1860 में 'बागमनोहर' नामक एक बहुत ही बड़ा रीति ग्रंथ कवि प्रिया की शैली पर बनाया। 'कविप्रिया' से इसमें विशेषता यह है कि इसमें पिंगल भी आ गया है।
  • इस एक ही ग्रंथ में पिंगल, रस, अलंकार, गुण, दोष, शब्दशक्ति आदि सब कुछ अध्ययन के लिए रख दिया गया है। इससे वह साहित्य का एक सर्वांगपूर्ण ग्रंथ कहा जा सकता है। इसमें हर प्रकार के छंद हैं।
  • संस्कृत के वर्णवृत्तों में बड़ी सुंदर रचना है। यह अत्यंत रोचक और उपादेय ग्रंथ है।

मुखससी ससि दून कला धरे । कि मुकुतागन जावक में भरे।
ललितकुंदकलीअनुहारिके । दसन हैं वृषभानु कुमारि के
सुखद जंत्रा कि भाल सुहाग के । ललित मंत्र किधौं अनुरागके।
भ्रकुटियोंवृषभानुसुतालसै । जनु अनंग सरासन को हँसै
मुकुर तौ पर दीपति को धानी । ससि कलंकित, राहु बिथा घनी।
अपर ना उपमा जग में लहै । तव प्रिया! मुख के सम को कहै?



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