एक पत्र -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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घेर रहे सन्तरी, बताओ अब कैसे चिल्लाऊँ मैं?
घेर रहे सन्तरी, बताओ अब कैसे चिल्लाऊँ मैं?


फिर-फिर कसता हूँ कड़ियाँ, फिर-फिर होती कसमस जारी;
फिर-फिर कसता हूँ कड़ियाँ, फिर-फिर होती कशमकश जारी;
फिर-फिर राख डालता हूँ, फिर-फिर हँसती है चिनगारी।
फिर-फिर राख डालता हूँ, फिर-फिर हँसती है चिनगारी।
टूट नहीं सकता ज्वाला से, जलतों का अनुराग सखे!
टूट नहीं सकता ज्वाला से, जलतों का अनुराग सखे!

Revision as of 11:52, 23 December 2011

एक पत्र -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

मैं चरणॊं से लिपट रहा था, सिर से मुझे लगाया क्यों?
पूजा का साहित्य पुजारी पर इस भाँति चढ़ाया क्यों?
गंधहीन बन-कुसुम-स्तुति में अलि का आज गान कैसा?
मन्दिर-पथ पर बिछी धूलि की पूजा का विधान कैसा?

कहूँ, या कि रो दूँ कहते, मैं कैसे समय बिताता हूँ;
बाँध रही मस्ती को अपना बंधन सुदृढ़ बनाता हूँ।
ऐसी आग मिली उमंग की ख़ुद ही चिता जलाता हूँ;
किसी तरह छींटों से उभरा ज्वालामुखी दबाता हूँ।

द्वार कंठ का बन्द, गूँजता हृदय प्रलय-हुँकारों से;
पड़ा भाग्य का भार काटता हूँ कदली तलवारों से।
विस्मय है, निर्बन्ध कीर को यह बन्धन कैसे भाया?
चारा था चुगना तोते को, भाग्य यहाँ तक ले आया।

औ' बंधन भी मिला लौह का, सोने की कड़ियाँ न मिलीं;
बन्दी-गृह में मन बहलाता, ऐसी भी घड़ियाँ न मिलीं।
आँखों को है शौक़ प्रलय का, कैसे उसे बुलाऊँ मैं?
घेर रहे सन्तरी, बताओ अब कैसे चिल्लाऊँ मैं?

फिर-फिर कसता हूँ कड़ियाँ, फिर-फिर होती कशमकश जारी;
फिर-फिर राख डालता हूँ, फिर-फिर हँसती है चिनगारी।
टूट नहीं सकता ज्वाला से, जलतों का अनुराग सखे!
पिला-पिला कर ख़ून हृदय का पाल रहा हूँ आग सखे!

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