एक विलुप्त कविता -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें,
बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें,
आज क्या है कि देख कौम को गम है।
आज क्या है कि देख कौम को ग़म है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
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दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो
दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो
दो बूँद आँसू न उनको यह भी कोई धरम है?
दो बूँद आँसू न उनको, यह भी कोई धरम है?
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है?
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है?
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें
यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है।
यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है।
सेवा व्रत शूल का पथ है गद्दी नहीं कुसुम की!
सेवा व्रत शूल का पथ है, गद्दी नहीं कुसुम की!
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है।
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है।



Revision as of 12:02, 23 December 2011

एक विलुप्त कविता -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

बरसों बाद मिले तुम हमको आओ जरा विचारें,
आज क्या है कि देख कौम को ग़म है।
कौम-कौम का शोर मचा है, किन्तु कहो असल में
कौन मर्द है जिसे कौम की सच्ची लगी लगन है?
भूखे, अपढ़, नग्न बच्चे क्या नहीं तुम्हारे घर में?
कहता धनी कुबेर किन्तु क्या आती तुम्हें शरम है?
आग लगे उस धन में जो दुखियों के काम न आए,
लाख लानत जिनका, फटता नही मरम है।

दुह-दुह कर जाती गाय की निजतन धन तुम पा लो
दो बूँद आँसू न उनको, यह भी कोई धरम है?
देख रही है राह कौम अपने वैभव वालों की
मगर फिकर क्या, उन्हें सोच तो अपनी ही हरदम है?
हँसते हैं सब लोग जिन्हें गैरत हो वे शरमायें
यह महफ़िल कहने वालों की, बड़ा भारी विभ्रम है।
सेवा व्रत शूल का पथ है, गद्दी नहीं कुसुम की!
घर बैठो चुपचाप नहीं जो इस पर चलने का दम है।

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