कुंजी -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions

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जब मैं बालक अबोध अनजान था।
जब मैं बालक अबोध अनजान था।


यह पवन तुम्हारी साँस का
यह पवन तुम्हारी साँस का,
सौरभ लाता था।
सौरभ लाता था।
उसके कंधों पर चढ़ा
उसके कंधों पर चढ़ा,
मैं जाने कहाँ-कहाँ
मैं जाने कहाँ-कहाँ,
आकाश में घूम आता था।
आकाश में घूम आता था।


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मगर कोई परी मेरे साथ में थी;
मगर कोई परी मेरे साथ में थी;
मुझे मालूम तो न था,
मुझे मालूम तो न था,
मगर ताले की कूंजी मेरे हाथ में थी।
मगर ताले की कुंजी मेरे हाथ में थी।


जवान हो कर मैं आदमी न रहा,
जवान हो कर मैं आदमी न रहा,

Revision as of 06:22, 24 December 2011

कुंजी -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
जन्म 23 सितंबर, सन 1908
जन्म स्थान सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार)
मृत्यु 24 अप्रैल, सन 1974
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ

घेरे था मुझे तुम्हारी साँसों का पवन,
जब मैं बालक अबोध अनजान था।

यह पवन तुम्हारी साँस का,
सौरभ लाता था।
उसके कंधों पर चढ़ा,
मैं जाने कहाँ-कहाँ,
आकाश में घूम आता था।

सृष्टि शायद तब भी रहस्य थी।
मगर कोई परी मेरे साथ में थी;
मुझे मालूम तो न था,
मगर ताले की कुंजी मेरे हाथ में थी।

जवान हो कर मैं आदमी न रहा,
खेत की घास हो गया।

तुम्हारा पवन आज भी आता है
और घास के साथ अठखेलियाँ करता है,
उसके कानों में चुपके चुपके
कोई संदेश भरता है।

घास उड़ना चाहती है
और अकुलाती है,
मगर उसकी जड़ें धरती में
बेतरह गड़ी हुईं हैं।
इसलिए हवा के साथ
वह उड़ नहीं पाती है।

शक्ति जो चेतन थी,
अब जड़ हो गयी है।
बचपन में जो कुंजी मेरे पास थी,
उम्र बढ़ते बढ़ते
वह कहीं खो गयी है।

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