रोटी और स्वाधीनता -रामधारी सिंह दिनकर: Difference between revisions
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आज़ादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जगाएगा ? | |||
मरभूखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ? | मरभूखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ? | ||
आज़ादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं, | |||
पर कहीं भूख बेताब हुई तो | पर कहीं भूख बेताब हुई तो आज़ादी की खैर नहीं। | ||
हो रहे खड़े | हो रहे खड़े आज़ादी को हर ओर दगा देने वाले, | ||
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेने वाले। | पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेने वाले। | ||
इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है ? | इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है ? | ||
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झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ? | झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ? | ||
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा ? | आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा ? | ||
है बड़ी बात | है बड़ी बात आज़ादी का पाना ही नहीं, जगाना भी, | ||
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी। | बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी। | ||
Revision as of 13:15, 24 March 2012
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