प्रेम समुद्र परयो गहिरे -देव: Difference between revisions
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प्रेम समुद्र परयो गहिरे अभिमान के फेन रह्यो गहि रे मन । | प्रेम समुद्र परयो गहिरे अभिमान के फेन रह्यो गहि रे मन । | ||
कोप तरँगन ते बहि रे अकुलाय पुकारत क्योँ बहिरे मन । | कोप तरँगन ते बहि रे अकुलाय पुकारत क्योँ बहिरे मन । | ||
देवजू लाज | देवजू लाज जहाज़ ते कूद भरयो मुख बूँद अजौँ रहि रे मन । | ||
जोरत तोरत प्रीति तुही अब तेरी अनीति तुही सहि रे मन । | जोरत तोरत प्रीति तुही अब तेरी अनीति तुही सहि रे मन । | ||
Revision as of 13:56, 24 March 2012
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प्रेम समुद्र परयो गहिरे अभिमान के फेन रह्यो गहि रे मन । |
टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |