राम (कवि): Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:रीति काल" to "Category:रीति कालCategory:रीतिकालीन कवि") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "श्रृंगार" to "शृंगार") |
||
Line 1: | Line 1: | ||
*ये [[रीति काल]] के कवि थे। | *ये [[रीति काल]] के कवि थे। | ||
*राम का 'शिवसिंह सरोज' में जन्म संवत् 1703 लिखा है और कहा गया है कि इनके कवित्त [[कालिदास त्रिवेदी|कालिदास]] के 'हज़ारा' में हैं। | *राम का 'शिवसिंह सरोज' में जन्म संवत् 1703 लिखा है और कहा गया है कि इनके कवित्त [[कालिदास त्रिवेदी|कालिदास]] के 'हज़ारा' में हैं। | ||
*इनका नायिका भेद का एक ग्रंथ ' | *इनका नायिका भेद का एक ग्रंथ 'शृंगार सौरभ' है जिसकी कविता बहुत ही मनोरम है। | ||
*इनका एक 'हनुमान नाटक' भी पाया गया है। | *इनका एक 'हनुमान नाटक' भी पाया गया है। | ||
*'शिवसिंह' के अनुसार इनका कविता काल संवत 1730 के लगभग माना जा सकता है। | *'शिवसिंह' के अनुसार इनका कविता काल संवत 1730 के लगभग माना जा सकता है। |
Revision as of 13:21, 25 June 2013
- ये रीति काल के कवि थे।
- राम का 'शिवसिंह सरोज' में जन्म संवत् 1703 लिखा है और कहा गया है कि इनके कवित्त कालिदास के 'हज़ारा' में हैं।
- इनका नायिका भेद का एक ग्रंथ 'शृंगार सौरभ' है जिसकी कविता बहुत ही मनोरम है।
- इनका एक 'हनुमान नाटक' भी पाया गया है।
- 'शिवसिंह' के अनुसार इनका कविता काल संवत 1730 के लगभग माना जा सकता है।
- इनका एक प्रसिद्ध पद है -
उमड़ि घुमड़ि घन छोड़त अखंड धार,
चंचला उठति तामें तरजि तरजि कै।
बरही पपीहा भेक पिक खग टेरत हैं,
धुनि सुनि प्रान उठे लरजि लरजि कै
कहै कवि राम लखि चमक खदोतन की,
पीतम को रही मैं तो बरजि बरजि कै।
लागे तन तावन बिना री मनभावन कै
सावन दुवन आयो गरजि गरजि कै
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
सम्बंधित लेख