शंभुनाथ मिश्र: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:रीति काल" to "Category:रीति कालCategory:रीतिकालीन कवि") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "श्रृंगार" to "शृंगार") |
||
Line 3: | Line 3: | ||
*यह 'असोथर, ज़िला फतेहपुर के राजा 'भगवंतराय खीची' के यहाँ रहते थे। | *यह 'असोथर, ज़िला फतेहपुर के राजा 'भगवंतराय खीची' के यहाँ रहते थे। | ||
*'अलंकारदीप' में अधिकतर दोहे हैं, कवित्त और सवैया कम हैं। | *'अलंकारदीप' में अधिकतर दोहे हैं, कवित्त और सवैया कम हैं। | ||
*[[रस| | *[[रस|शृंगार]] वर्णन में अधिक लिप्त न होकर आश्रयदाता के यश और प्रताप वर्णन में अधिक लिप्त हैं - | ||
<blockquote><poem>आजु चतुरंग महाराज सेन साजत ही, | <blockquote><poem>आजु चतुरंग महाराज सेन साजत ही, | ||
धौंसा की धुकार धूरि परी मुँह माही के। | धौंसा की धुकार धूरि परी मुँह माही के। |
Revision as of 13:21, 25 June 2013
- शंभुनाथ मिश्र नाम के कई कवि हुए हैं जिनमें से एक संवत 1806 में, दूसरे 1867 में, तीसरे 1901 में हुए हैं। यहाँ प्रथम का उल्लेख किया जाता है, जिन्होंने 'रसकल्लोल', 'रसतरंगिणी' और 'अलंकारदीप' नामक तीन रीति ग्रंथ बनाए हैं।
- शंभुनाथ मिश्र का समय रीति काल है।
- यह 'असोथर, ज़िला फतेहपुर के राजा 'भगवंतराय खीची' के यहाँ रहते थे।
- 'अलंकारदीप' में अधिकतर दोहे हैं, कवित्त और सवैया कम हैं।
- शृंगार वर्णन में अधिक लिप्त न होकर आश्रयदाता के यश और प्रताप वर्णन में अधिक लिप्त हैं -
आजु चतुरंग महाराज सेन साजत ही,
धौंसा की धुकार धूरि परी मुँह माही के।
भय के अजीरन तें जीरन उजीर भए,
सूल उठी उर में अमीर जाही ताही के
बीर खेत बीच बरछी लै बिरुझानो, इतै
धीरज न रह्यो संभु कौन हू सिपाही के।
भूप भगवंत बीर ग्वाही कै खलक सब,
स्याही लाई बदन तमाम पातसाही के
|
|
|
|
|