दिक्पाल: Difference between revisions
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Revision as of 07:50, 23 June 2017
दिक्पाल पुराणों के अनुसार दस दिशाओं का पालन करने वाले देवगण माने जाते हैं। इनकी संख्या 10 मानी गई है। वराह पुराण के अनुसार इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है -
- जब ब्रह्मा सृष्टि करने के विचार में चिंतनरत थे, उस समय उनके कान से दस कन्याएँ उत्पन्न हुईं, जिनमें मुख्य 6 और 4 गौण थीं।
- पूर्वा - जो पूर्व दिशा कहलाई।
- आग्नेयी - जो आग्नेय दिशा कहलाई।
- दक्षिणा - जो दक्षिण दिशा कहलाई।
- नैऋती - जो नैऋत्य दिशा कहलाई।
- पश्चिमा - जो पश्चिम दिशा कहलाई।
- वायवी - जो वायव्य दिशा कहलाई।
- उत्तर - जो उत्तर दिशा कहलाई।
- ऐशानी - जो ईशान दिशा कहलाई।
- ऊर्ध्व - जो ऊर्ध्व दिशा कहलाई।
- अधस् - जो अधस् दिशा कहलाई।
- उन कन्याओं ने ब्रह्मा का नमन कर उनसे रहने का स्थान और उपयुक्त पतियों की याचना की।
- ब्रह्मा ने कहा- 'तुम लोगों का जिस ओर जाने की इच्छा हो जा सकती हो। शीघ्र ही तुम लोगों को अनुरूप पति भी दूँगा।'
- इसके अनुसार उन कन्याओं ने एक एक दिशा की ओर प्रस्थान किया।
- इसके पश्चात् ब्रह्मा ने आठ दिग्पालों की सृष्टि की और अपनी कन्याओं को बुलाकर प्रत्येक लोकपाल को एक एक कन्या प्रदान कर दी।
- इसके बाद वे सभी लोकपाल उन कन्याओं के साथ अपनी दिशाओं में चले गए।
- इन दिग्पालों के नाम पुराणों में दिशाओं के क्रम से निम्नांकित है-
- पूर्व के इंद्र
- दक्षिणपूर्व के अग्नि
- दक्षिण के यम
- दक्षिण पश्चिम के सूर्य
- पश्चिम के वरुण
- पश्चिमोत्तर के वायु
- उत्तर के कुबेर
- उत्तरपूर्व के सोम।
- शेष दो दिशाओं अर्थात ऊर्ध्व या आकाश की ओर वे स्वयं चले गए और नीचे की ओर उन्होंने शेष या अनंत को प्रतिष्ठित किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
दिक्पाल (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 3 अक्टूबर, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख