अनंतदास: Difference between revisions
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अनंतदास(1) भक्तमाल के रचयिता नाभादास के गूरुभाई विनोद जी के शिष्य अनंतदास का समय उनके द्वारा रचित नामदेव की परचई के आधार पर वि.सं. 1645 है। इन्होंने पीपा की परचई में अपनी गुरुपरंपरा को रामानंद से आरंभ माना है। ये हिंदी के अनंतदास से भिन्न व्यक्ति हैं। इनके आराध्य पूर्णतया निर्गुण शून्यवत श्रीकृष्ण हैं।[1]
उसका क्रम इस प्रकार दिया है-रामानंद-अनंतानंद-कृष्णदास-अग्रदास-विनोदी-अनंतदास। इन्होंने कबीरदास, नामदेव, पीपा, त्रिलोचन, रैदास जैसे संतों की परचइयाँ लिखी हैं।जिनसे इन संतों के जीवन की बहुत सी महत्वपूर्ण बातें ज्ञात होती हैं, और वे लेखक के लगभग समकालीन होने के कारण प्रमाण के रूप में भी स्वीकार की जा सकती हैं।[1]
अनंतदास(2) उत्कल प्रांत के पंचसखा वैष्णव भक्तों के संप्रदाय में पंचसखाओं अर्थात् भगवान श्रीकृष्ण के पाँच प्रधान भक्तों में बलरामदास, यशोवंतदास, अनंतदास (जन्म सं. 1550) तथा अच्युतानंददास की गणना की जाती है। ये हिंदी के अनंतदास से भिन्न व्यक्ति हैं। इनके आराध्य पूर्णतया निर्गुण शून्यवत श्रीकृष्ण हैं।[1]
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