कद्रु: Difference between revisions

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*कद्रु ने अपने सहस्र पुत्रों को आज्ञा दी कि वे काले रंग के बाल बनकर पूँछ में लग जाएँ। जिन सर्पों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी, उन्हें उसने शाप दिया कि पांडव वंशी बुद्धिमान राजर्षि [[जनमेजय]] के सर्पसत्र में प्रज्वलित [[अग्नि]] उन्हें जलाकर भस्म कर देगी।
*कद्रु ने अपने सहस्र पुत्रों को आज्ञा दी कि वे काले रंग के बाल बनकर पूँछ में लग जाएँ। जिन सर्पों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी, उन्हें उसने शाप दिया कि पांडव वंशी बुद्धिमान राजर्षि [[जनमेजय]] के सर्पसत्र में प्रज्वलित [[अग्नि]] उन्हें जलाकर भस्म कर देगी।
*शीघ्रगामिनी कद्रु, विनता के साथ उस [[समुद्र]] को लाँघकर तुरंत ही उच्चै:श्रवा घोड़े के पास पहुँच गई। श्वेत वर्ण के महावेगशाली अश्व की पूँछ के घनीभूत काले रंग को देखकर विनता विषाद की मूर्ति बन गई और उसने कद्रु की दासी होना स्वीकार किया।
*शीघ्रगामिनी कद्रु, विनता के साथ उस [[समुद्र]] को लाँघकर तुरंत ही उच्चै:श्रवा घोड़े के पास पहुँच गई। श्वेत वर्ण के महावेगशाली अश्व की पूँछ के घनीभूत काले रंग को देखकर विनता विषाद की मूर्ति बन गई और उसने कद्रु की दासी होना स्वीकार किया।
*कद्रु, विनता तथा कद्रु के पुत्र [[गरुड़]] की पीठ पर बैठकर नागलोक देखने गए। गरुड़ इतनी ऊँचाई पर उड़े कि सर्प [[सूर्य]] ताप से मूर्छित हो उठे। कद्रु ने मेघ [[वर्षा]] के द्वारा ताप-शमन करने के लिए [[इंद्र]] की स्तुति की।<ref>{{cite web |url=http://khoj.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%95%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%81 |title=कद्रु|accessmonthday=04 फ़रवरी|accessyear=2014|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>  
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कद्रु अथवा कद्रू पौराणिक धार्मिक ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दक्ष प्रजापति की कन्या और महर्षि कश्यप की पत्नी थी।

  • पौराणिक इतिवृत्त है कि एक बार महर्षि कश्यप ने कद्रु से कहा, "तुम्हारी जो इच्छा हो, माँग लो।" कद्रु ने एक सहस्र तेजस्वी नागों को पुत्र रूप में माँगा।[1]
  • एक बार श्वेत उच्चै:श्रवा घोड़े की पूँछ के रंग को लेकर कद्रु तथा विनता में विवाद छिड़ा। कद्रु ने उसे काले रंग का बताया। हारने पर दासी होने की शर्त ठहरी।
  • कद्रु ने अपने सहस्र पुत्रों को आज्ञा दी कि वे काले रंग के बाल बनकर पूँछ में लग जाएँ। जिन सर्पों ने उसकी आज्ञा नहीं मानी, उन्हें उसने शाप दिया कि पांडव वंशी बुद्धिमान राजर्षि जनमेजय के सर्पसत्र में प्रज्वलित अग्नि उन्हें जलाकर भस्म कर देगी।
  • शीघ्रगामिनी कद्रु, विनता के साथ उस समुद्र को लाँघकर तुरंत ही उच्चै:श्रवा घोड़े के पास पहुँच गई। श्वेत वर्ण के महावेगशाली अश्व की पूँछ के घनीभूत काले रंग को देखकर विनता विषाद की मूर्ति बन गई और उसने कद्रु की दासी होना स्वीकार किया।
  • कद्रु, विनता तथा कद्रु के पुत्र गरुड़ की पीठ पर बैठकर नागलोक देखने गए। गरुड़ इतनी ऊँचाई पर उड़े कि सर्प सूर्य ताप से मूर्छित हो उठे। कद्रु ने मेघ वर्षा के द्वारा ताप-शमन करने के लिए इंद्र की स्तुति की।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, आदि पर्व, 16-8)
  2. कद्रु (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 04 फ़रवरी, 2014।

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