जोधाराज

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 13:53, 30 June 2017 by व्यवस्थापन (talk | contribs) (Text replacement - " जगत " to " जगत् ")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

जोधाराज गौड़ ब्राह्मण 'बालकृष्ण' के पुत्र थे। इन्होंने नीवँगढ़, वर्तमान नीमराणा, अलवर के राजा 'चंद्रभान चौहान' के अनुरोध से 'हम्मीर रासो' नामक एक बड़ा प्रबंध काव्य संवत् 1875 में लिखा जिसमें रणथंभौर के प्रसिद्ध वीर महाराज हम्मीरदेव का चरित्र वीरगाथा काल की छप्पय पद्धति पर वर्णन किया गया है। हम्मीरदेव सम्राट पृथ्वीराज के वंशज थे। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन को कई बार परास्त किया था और अंत में अलाउद्दीन की चढ़ाई में ही वे मारे गए थे। इस दृष्टि से इस काव्य के नायक देश के प्रसिद्ध वीरों में हैं। जोधाराज ने चंद आदि प्राचीन कवियों की पुरानी भाषा का भी यत्र तत्र अनुकरण किया है; जैसे जगह जगह 'हि' विभक्ति के प्राचीन रूप 'ह' का प्रयोग। 'हम्मीररासो' की कविता बड़ी ओजस्विनी है। घटनाओं का वर्णन ठीक ठीक और विस्तार के साथ हुआ है। काव्य का स्वरूप देने के लिए कवि ने कुछ घटनाओं की कल्पना भी की है जैसे महिमा मंगोल का अपनी प्रेयसी वेश्या के साथ दिल्ली से भागकर हम्मीरदेव की शरण में आना और अलाउद्दीन का दोनों को माँगना। यह कल्पना राजनीतिक उद्देश्य हटाकर प्रेम प्रसंग को युद्ध का कारण बताने के लिए, प्राचीन कवियों की प्रथा के अनुसार की गई है। पीछे संवत् 1902 में 'चंद्रशेखर वाजपेयी' ने जो 'हम्मीर हठ' लिखा उसमें भी यह घटना ज्यों की त्यों ले ली गई है। ग्वाल कवि के 'हम्मीरहठ' में भी बहुत संभव है कि, यह घटना ली गई होगी।

भाषा

प्राचीन वीरकाल के अंतिम राजपूत वीर का चरित जिस रूप में और जिस प्रकार की भाषा में अंकित होना चाहिए था उसी रूप में उसी प्रकार की भाषा में जोधाराज अंकित करने में सफल हुए हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। इन्हें हिन्दी काव्य की ऐतिहासिक परंपरा की अच्छी जानकारी थी, यह बात स्पष्ट लक्षित होती है। नीचे इनकी रचना के कुछ नमूने उध्दृत किए जाते हैं ,

कब हठ करै अलावदी रणथँभवर गढ़ आहि।
कबै सेख सरनै रहै बहुरयो महिमा साहि
सूर सोच मन में करौ, पदवी लहौ न फेरि।
जो हठ छंडो राव तुम, उत न लजै अजमेरि
सरन राखि सेख न तजौ, तजौ सीस गढ़ देस।
रानी राव हमीर को यह दीन्हौं उपदेस

कहँ पवार जगदेव सीस आपन कर कट्टयो।
कहाँ भोज विक्रम सुराव जिन परदुख मिट्टयो
सवा भार नित करन कनक विप्रन को दीनो।
रह्यो न रहिए कोय देव नर नाग सु चीनो
यह बात राव हम्मीर सूँ रानी इमि आसा कही।
जो भई चक्कवै मंडली सुनौ राव दीखै नहीं

जीवन मरन सँजोग जग कौन मिटावै ताहि।
जो जनमै संसार में अमर रहै नहिं आहि
कहाँ जैत कहँ सूर, कहाँ सोमेस्वर राणा।
कहाँ गए प्रथिराज साह दल जीति न आणा
होतब मिटै न जगत् में कीजै चिंता कोहि।
आसा कहै हमीर सौं अब चूकौ मति सोहि

पुंडरीक सुत सुता तासु पद कमल मनाऊँ।
बिसद बरन बर बसन बिषद भूषन हिय धयाऊँ
बिषद जंत्रा सुर सुद्ध तंत्र सुंदर जेत सोहै।
विषद ताल इक भुजा, दुतिय पुस्तक मन मोहै
मति राजहंस हंसन चढ़ी रटी सुरन कीरति बिमल।
जय मातु सदा बरदायिनी, देहु सदा बरदान बल



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 242।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः