कस्तूरी बाई

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कस्तूरी बाई (जन्म- 1892; मृत्यु- 4 अक्टूबर, 1979) प्रसिद्ध भारतीय कवयित्री थीं। वह माखनलाल चतुर्वेदी की बहन थीं। हाथी महाकौशल से जेल जाने वाली वे प्रथम महिला थीं। कस्तूरी बाई में बाल्यकाल से ही राष्ट्रीयता के संस्कार थे। उन्होंने समाज सेवा और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना प्रारंभ कर दिया था। महिला संगठन, चरखा सिखाने की कक्षा लेना, शराब एवं विदेशी वस्त्रों की दुकान पर धरना देना आदि उनके प्रमुख कार्य थे।

परिचय

कस्तूरी बाई का जन्म 1892 में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित नंदलाल चतुर्वेदी और माता का नाम सुंदर बाई था। बचपन में ही उनका विवाह किशोरी लाल उपाध्याय से हो गया था। दुर्भाग्य से कस्तूरी बाई 21 वर्ष की अवस्था में ही विधवा हो गईं। इसके बाद वह अपने बड़े भाई माखनलाल चतुर्वेदी के पास रहने के लिए खंडवा आ गई थीं।[1]

संस्कार

राष्ट्र सेवी परिवार में जन्म लेने के कारण कस्तूरी बाई में बाल्यकाल से ही राष्ट्रीयता के संस्कार थे। जब उनके पति की मृत्यु हुई, उस समय माखनलाल चतुर्वेदी भी अस्वस्थ चल रहे थे और उनकी पत्नी का निधन भी हो चुका था। ऐसी परिस्थिति में परस्पर सहायता के लिए दोनों भाई-बहन खंडवा में साथ रहने लगे।

राष्ट्रीयता की भावना

इसी समय गांधी जी ने 'असहयोग आंदोलन' प्रारंभ कर दिया था। कस्तूरी बाई ने समाज सेवा और राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना प्रारंभ कर दिया। राष्ट्रीय भावना से सराबोर महिला संगठन, चरखा सिखाने की कक्षा लेना, शराब एवं विदेशी वस्त्रों की दुकान पर धरना देना आदि उनके प्रमुख कार्य थे। सन 1932 में उन्होंने खंडवा में एक जुलूस का नेतृत्व किया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर चार महीने के लिए जेल में भेज दिया गया। इसके बाद उन्हें खंडवा से नागपुर की जेल में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां उनका परिचय सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी जानकी देवी बजाज हुआ। इससे उनके व्यक्तित्व में और निखार आ गया।

समाज सेवा

जेल से रिहा होने के बाद कस्तूरी बाई कुछ समय के लिए अपनी ससुराल (होशंगाबाद) चली गईं, क्योंकि उनके भाई माखनलाल चतुर्वेदी इस समय जेल में थे। जब तक उनका स्वास्थ्य अच्छा रहा, तब तक वह समाज सेवा का कार्य करती रहीं। इसी राष्ट्र सेवा के कारण 'मध्य प्रदेश कांग्रेस समिति' ने उन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया।

मृत्यु

4 अक्टूबर, 1979 को कस्तूरी बाई का निधन हो गया। उनके निधन पर जिला कांग्रेस कमेटी ने एक सार्वजनिक सभा में प्रस्ताव पास किया। इस प्रकार कस्तूरी बाई अपनी देशभक्ति एवं समाज सेवा के कारण भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में अपना नाम अमर कर गईं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. स्वतंत्रता सेनानी कोश, गांधी युगीन, भाग तीन, पृष्ठ संख्या 114- 115

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