रूपसाहि

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  • रूपसाहि पन्ना के रहने वाले श्रीवास्तव कायस्थ थे।
  • इन्होंने संवत 1813 में 'रूपविलास' नामक ग्रंथ लिखा जिसमें दोहे में ही कुछ पिंगल, कुछ अलंकार, नायिका भेद आदि हैं -

जगमगाति सारी जरी झलमल भूषन जोति।
भरी दुपहरी तिया की भेंट पिया सों होति
लालन बेगि चलौ न क्यों बिना तिहारे बाल।
मार मरोरनि सो मरति करिए परसि निहाल


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