बैरीसाल

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  • बैरीसाल ये असनी, फतेहपुर ज़िले के रहने वाले ब्राह्मण वंश में उत्पन्न हुए थे।
  • बैरीसाल के वंशधर अब तक असनी में हैं।
  • इन्होंने 'भाषा भरण' नामक एक अच्छा अलंकार ग्रंथ संवत 1825 में रचा, जिसमें प्राय: दोहे ही हैं।
  • दोहे बहुत सरस हैं और अलंकारों से परिपूर्ण हैं।
  • बैरीसाल अत्यंत शिष्ट और नम्र स्वभाव के थे।
  • यह बिहारी के उत्कृष्ट दोहों की टक्कर के ज्ञात होते हैं -

नहिं कुरंग नहिं ससक यह, नहिं कलंक नहिं पंक।
बीस बिसे बिरहा वही, गही दीठि ससि अंक
करत कोकनद मदहि रद, तुव पव हर सुकुमार।
भए अरुन अति दबि मनो पायजेब के भार



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