शून्य से टकरा कर सुकुमार करेगी पीड़ा हाहाकार, बिखर कर कन कन में हो व्याप्त मेघ बन छा लेगी संसार! पिघलते होंगे यह नक्षत्र अनिल की जब छू कर निश्वास निशा के आँसू में प्रतिबिम्ब देख निज काँपेगा आकाश! विश्व होगा पीड़ा का राग निराशा जब होगी वरदान साथ ले कर मुरझाई साध बिखर जायेंगे प्यासे प्राण! उदधि नभ को कर लेगा प्यार मिलेंगे सीमा और अनंत उपासक ही होगा आराध्य एक होंगे पतझार वसंत! बुझेगा जल कर आशा-दीप सुला देगा आकर उन्माद, कहाँ कब देखा था वह देश? अतल में डूबेगी यह याद! प्रतीक्षा में मतवाले नयन उड़ेंगे जब सौरभ के साथ, हृदय होगा नीरव आह्वान मिलोगे क्या तब हे अज्ञात?