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पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै लगि लागि गयो कहुँ काहु करैटो।
हिरदै दहिबे सहिबे ही को है, कहिबे को कहा कछु है गहि फेटो॥
सूधै चितै तन हा हा करें हू ’रहीम’ इतो दुख जात क्यों मेटो।
ऐसे कठोर सों औ चितचोर सों कौन सी हाय घरी भई भेंटो॥