बहुत दूर पर अट्टहास कर सागर हँसता है। दशन फेन के, अधर व्योम के। ऐसे में सुन्दरी ! बेचने तू क्या निकली है, अस्त-व्यस्त, झेलती हवाओं के झकोर सुकुमार वक्ष के फूलों पर ? सरकार ! और कुछ नहीं, बेचती हूँ समुद्र का पानी। तेरे तन की श्यामता नील दर्पण-सी है, श्यामे ! तूने शोणित में है क्या मिला लिया ? सरकार ! और कुछ नहीं, रक्त में है समुद्र का पानी। माँ ! ये तो खारे आँसू हैं, ये तुझको मिले कहाँ से ?