कयाधु

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:41, 3 March 2015 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''कयाधु''' अथवा 'कयाध' जम्भ की पुत्री तथा [[दैत्य|दैत्यो...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

कयाधु अथवा 'कयाध' जम्भ की पुत्री तथा दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु की पत्नी थी। इसी के गर्भ से भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ था।

  • एक समय अपने किसी प्रयोजन की पूर्ति के उद्देश्य से हिरण्यकशिपु तप करने मंदराचल पर्वत पर गया। वहां देवगुरु बृहस्पति ने तोता बनकर उसकी तपस्या भंग कर दी। तब हिरण्यकशिपु घर लौट आया। उसकी पत्नी कयाधु ने देखा कि ये तो तप करने गए थे, लौट क्यों आए? उसने पूछा आप आ गए। हो गई तपस्या। तो हिरण्यकशिपु ने पूरी बात बताई और कहा- "तप कर तो रहा था, पर एक परेशानी आ गई।" उसने कयाधु को बताया कि- "जैसे ही तप के लिए आँख बंद की तो पेड़ के ऊपर एक तोता आकर बैठ गया और 'नारायण-नारायण' कहने लगा।"
  • कयाधु ने सोचा ये तो चमत्कार हो गया। स्वयं को ही ईश्वर मानने वाले के मुख से 'नारायण-नारायण' दो बार निकला। कयाधु बोली- "अरे ये क्या बोल रहे हैं आप?" हिरण्यकशिपु बोला- "नारायण-नारायण"। कयाधु ने सोचा यदि इनके मुंह से 108 बार 'नारायण-नारायण' कहलवा दूं तो ये पवित्र हो जाएंगे। ऐसा सोचकर बार-बार कयाधु उससे पूछने लगी- "क्यों जी वो आप क्या बता रहे थे?" हिरण्यकशिपु ने पुन: कहा कि- "बता तो दिया 'नारायण-नारायण' कह रहा था। रात को कयाधु ने सोचा कि पूरे 108 पाठ करा ही लूंगी। उसने सोने से पूर्व फिर पूछा- "स्वामी! एक बात तो बताइए? आपको मैंने इतना विचलित पहले कभी नहीं देखा आखिर वो था क्या, जिसने आपको इतना विचलित कर दिया।" हिरण्यकशिपु बोला- "नारायण था। परेशान हो गया 'नारायण-नारायण' बताकर।" इस प्रकार कयाधु ने हिरण्यकशिपु के मुख से 108 बार 'नारायण' बुलवा लिया और सोचा कि अब मेरा काम हुआ। तब उस रात्रि उसके गर्भ में प्रह्लाद की स्थापना हो गई। बीजारोपण करते समय भगवान का स्मरण करने से ही प्रह्लाद भगवान नारायण का भक्त हुआ।[1]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कयाधु (हिन्दी) दैनिक भास्कर। अभिगमन तिथि: 03 मार्च, 2015।

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः