साध्य भी बनो, साधन भी -रश्मि प्रभा

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साध्य भी बनो, साधन भी -रश्मि प्रभा
कवि रश्मि प्रभा
जन्म 13 फ़रवरी, 1958
जन्म स्थान सीतामढ़ी, बिहार
मुख्य रचनाएँ 'शब्दों का रिश्ता' (2010), 'अनुत्तरित' (2011), 'अनमोल संचयन' (2010), 'अनुगूँज' (2011) आदि।
अन्य जानकारी रश्मि प्रभा, स्वर्गीय महाकवि सुमित्रा नंदन पंत की मानस पुत्री श्रीमती सरस्वती प्रसाद की सुपुत्री हैं।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

अहम से बाहर आओ 
फिर देखो सब अपने हैं 
कोई न ऊँचा है, न नीचा 
न अमीर न गरीब … !
यदि सुदामा को गरीब मान लेते कृष्ण 
और स्वयं को राजा 
तो मित्रता का स्तम्भ नहीं बनते 
यदि रक्त संबंध को ही मानते 
तो यशोदा के लाल न कहे जाते 
राजपाट तो उनके हिस्से था ही 
अर्थ ही प्रमुख होता 
तो ताउम्र गोकुल और माखन नहीं सपनाते … !
अहम बंधनरहित प्रेम सोचता है 
जबकि हर संबंध में 
संस्कारों का बाँध होता है 
शारीरिक रास की कल्पना 
मनुष्य की संकीर्णता है 
रास अर्थात  
काम, क्रोध, मद, मोह और भय से मुक्ति 
एक चमत्कारिक कल्याणकारी स्थिति .... !
जब तक अहम है 
तुम हो ही नहीं - न मैं' में 
न हम' में 
तुम बस वह दीमक हो 
जो अपनी ही आत्मा को खाता है 
यह सोचते हुए 
कि मैं सर्वोच्च हूँ 
वह तुच्छ है  … !
अहम से बाहर निकलो 
साध्य भी बनो, साधन भी !!!

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