मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में न इनमें वो कशिश होगी, न बू होगी, न रानाई खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लंबी क़तारों में अदीबो! ठोस धरती की सतह पर लौट भी आओ मुलम्मे के सिवा क्या है फ़लक़ के चाँद-तारों में रहे मुफ़लिस गुज़रते बे-यक़ीनी के तज़रबे से बदल देंगे ये इन महलों की रंगीनी मज़ारों में कहीं पर भुखमरी की धूप तीखी हो गई शायद जो है संगीन के साए की चर्चा इश्तहारों में