जिसके सम्मोहन में पागल धरती है आकाश भी है एक पहेली-सी दुनिया ये गल्प भी है इतिहास भी है चिंतन के सोपान पे चढ़ कर चाँद-सितारे छू आए लेकिन मन की गहराई में माटी की बू-बास भी है इंद्रधनुष के पुल से गुज़र कर इस बस्ती तक आए हैं जहाँ भूख की धूप सलोनी चंचल है बिंदास भी है कंकरीट के इस जंगल में फूल खिले पर गंध नहीं स्मृतियों की घाटी में यूँ कहने को मधुमास भी है