अवधूता युगन युगन हम योगी, आवै ना जाय मिटै ना कबहूं, सबद अनाहत भोगी। सभी ठौर जमात हमरी, सब ही ठौर पर मेला। हम सब माय, सब है हम माय, हम है बहुरी अकेला। हम ही सिद्ध समाधि हम ही, हम मौनी हम बोले। रूप सरूप अरूप दिखा के, हम ही हम तो खेलें। कहे कबीर जो सुनो भाई साधो, ना हीं न कोई इच्छा। अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं, खेलूं सहज स्वइच्छा।