समरथाई का अंग -कबीर: Difference between revisions

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बिन डांडी बिन पालड़ैं, तोले सब संसार ॥5॥
बिन डांडी बिन पालड़ैं, तोले सब संसार ॥5॥


साईं सूं सब होत है, बंदै थैं कुछ नाहिं ।
साईं सूं सब होत है, बंदै तै कुछ नाहिं ।
राईं थैं परबत कषै, परबत राई माहिं ॥6॥
राईं तै परबत करै, परबत राई माहिं ॥6॥
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Latest revision as of 10:58, 8 September 2011

समरथाई का अंग -कबीर
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

जिसहि न कोई तिसहि तू, जिस तू तिस ब कोइ ।
दरिगह तेरी सांईयां , ना मरूम कोइ होइ ॥1॥

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ ।
धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ ॥2॥

अबरन कौं का बरनिये, मोपै लख्या न जाइ ।
अपना बाना वाहिया, कहि कहि थाके माइ ॥3॥

झल बावैं झल दाहिनैं, झलहि माहिं व्यौहार ।
आगैं पीछैं झलमई, राखैं सिरजन हार ॥4॥

सांई मेरा बाणियां, सहजि करै ब्यौपार ।
बिन डांडी बिन पालड़ैं, तोले सब संसार ॥5॥

साईं सूं सब होत है, बंदै तै कुछ नाहिं ।
राईं तै परबत करै, परबत राई माहिं ॥6॥





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