अवधूता युगन युगन हम योगी -कबीर: Difference between revisions
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अवधूता युगन युगन हम योगी | अवधूता युगन युगन हम योगी, | ||
आवै ना जाय मिटै ना कबहूं | आवै ना जाय मिटै ना कबहूं, सबद अनाहत भोगी। | ||
सबद अनाहत | |||
सभी ठौर जमात हमरी | सभी ठौर जमात हमरी, सब ही ठौर पर मेला। | ||
सब ही ठौर पर | हम सब माय, सब है हम माय, हम है बहुरी अकेला। | ||
हम सब माय सब है हम माय | |||
हम है बहुरी | हम ही सिद्ध समाधि हम ही, हम मौनी हम बोले। | ||
हम ही सिद्ध समाधि हम ही | रूप सरूप अरूप दिखा के, हम ही हम तो खेलें। | ||
हम मौनी हम | |||
रूप सरूप अरूप दिखा के | कहे कबीर जो सुनो भाई साधो, ना हीं न कोई इच्छा। | ||
हम ही हम तो | अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं, खेलूं सहज स्वइच्छा। | ||
कहे कबीर जो सुनो भाई साधो | |||
ना हीं न कोई | |||
अपनी मढ़ी में आप मैं डोलूं | |||
खेलूं सहज | |||
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Latest revision as of 07:23, 14 December 2011
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अवधूता युगन युगन हम योगी, |
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