कृष्णदास रीतिकाल: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:28, 8 January 2012
कृष्णदास (रीतिकाल) मिरज़ापुर के रहने वाले कोई कृष्ण भक्त जान पड़ते हैं। इन्होंने संवत् 1853 में 'माधुर्य लहरी' नाम की एक बड़ी पुस्तक 420 पृष्ठों की बनाई जिसमें विविध छंदों में 'कृष्णचरित' का वर्णन किया गया है। कविता इनकी साधारणत: अच्छी है। -
कौन काज लाज ऐसी करै जो अकाज अहो,
बार बार कहो नरदेव कहाँ पाइए।
दुर्लभ समाज मिल्यो सकल सिध्दांत जानि,
लीला गुन नाम धाम रूप सेवा गाइए।
बानी की सयानी सब पानी में बहाय दीजै,
जानी, सो न रीति जासों दंपति रिझाइए।
जैसी जैसी गही जिन लही तैसी नैननहू,
धान्य धान्य राधाकृष्ण नित ही गनाइए
टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 259।
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