गर्म पकौड़ी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions

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<poem>गर्म पकौड़ी-
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ऐ गर्म पकौड़ी,
गर्म पकौड़ी,
तेल की भुनी
ऐ गर्म पकौड़ी!
तेल की भुनी,
नमक मिर्च की मिली,
नमक मिर्च की मिली,
ऐ गर्म पकौड़ी !
ऐ गर्म पकौड़ी!
मेरी जीभ जल गयी
मेरी जीभ जल गयी,
सिसकियां निकल रहीं,
सिसकियां निकल रहीं,
लार की बूंदें कितनी टपकीं,
लार की बूंदें कितनी टपकीं,
पर दाढ़ तले दबा ही रक्‍खा मैंने
पर दाढ़ तले दबा ही रक्‍खा मैंने।


कंजूस ने ज्‍यों कौड़ी,
कंजूस ने ज्‍यों कौड़ी,
पहले तूने मुझ को खींचा,
पहले तूने मुझको खींचा,
दिल ले कर फिर कपड़े-सा फींचा,
दिल लेकर फिर कपड़े-सा फींचा,
अरी, तेरे लिए छोड़ी
अरी, तेरे लिए छोड़ी,
 
बम्‍हन की पकाई,
बम्‍हन की पकाई
मैंने घी की कचौड़ी।  
मैंने घी की कचौड़ी। </poem>
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Latest revision as of 14:05, 6 March 2012

गर्म पकौड़ी -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

गर्म पकौड़ी,
ऐ गर्म पकौड़ी!
तेल की भुनी,
नमक मिर्च की मिली,
ऐ गर्म पकौड़ी!
मेरी जीभ जल गयी,
सिसकियां निकल रहीं,
लार की बूंदें कितनी टपकीं,
पर दाढ़ तले दबा ही रक्‍खा मैंने।

कंजूस ने ज्‍यों कौड़ी,
पहले तूने मुझको खींचा,
दिल लेकर फिर कपड़े-सा फींचा,
अरी, तेरे लिए छोड़ी,
बम्‍हन की पकाई,
मैंने घी की कचौड़ी।




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