दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions

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क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ
क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ
कह जाते हो
कह जाते हो
और जगत की ओर ताककर
और जगत् की ओर ताककर
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर,
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर,
सह जाते हो।
सह जाते हो।
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स्वार्थ से हो भरपूर,
स्वार्थ से हो भरपूर,
जगत की निद्रा, है जागरण,
जगत की निद्रा, है जागरण,
और जागरण जगत का - इस संसृति का
और जागरण जगत् का - इस संसृति का
अन्त - विराम - मरण
अन्त - विराम - मरण
अविराम घात - आघात
अविराम घात - आघात

Latest revision as of 14:16, 30 June 2017

दीन -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

सह जाते हो
उत्पीड़न की क्रीड़ा सदा निरंकुश नग्न,
हृदय तुम्हारा दुबला होता नग्न,
अन्तिम आशा के कानों में
स्पन्दित हम - सबके प्राणों में
अपने उर की तप्त व्यथाएँ,
क्षीण कण्ठ की करुण कथाएँ
कह जाते हो
और जगत् की ओर ताककर
दुःख हृदय का क्षोभ त्यागकर,
सह जाते हो।
कह जाते हो-
"यहाँ कभी मत आना,
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख
यहाँ है सदा उठाना,
क्रूर यहाँ पर कहलाता है शूर,
और हृदय का शूर सदा ही दुर्बल क्रूर;
स्वार्थ सदा ही रहता परार्थ से दूर,
यहाँ परार्थ वही, जो रहे
स्वार्थ से हो भरपूर,
जगत की निद्रा, है जागरण,
और जागरण जगत् का - इस संसृति का
अन्त - विराम - मरण
अविराम घात - आघात
आह ! उत्पात!
यही जग - जीवन के दिन-रात।
यही मेरा, इनका, उनका, सबका स्पन्दन,
हास्य से मिला हुआ क्रन्दन।
यही मेरा, इनका, उनका, सबका जीवन,
दिवस का किरणोज्ज्वल उत्थान,
रात्रि की सुप्ति, पतन;
दिवस की कर्म - कुटिल तम - भ्रान्ति
रात्रि का मोह, स्वप्न भी भ्रान्ति,
सदा अशान्ति!"

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