चंद्रशेखर कवि: Difference between revisions
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<poem>उदै भानु पच्छिम प्रतच्छ, दिन चंद प्रकासै। | <poem>उदै भानु पच्छिम प्रतच्छ, दिन चंद प्रकासै। | ||
उलटि गंग बरु बहै, काम रति प्रीति विनासै | उलटि गंग बरु बहै, काम रति प्रीति विनासै |
Latest revision as of 07:55, 7 November 2017
चंद्रशेखर कवि 'वाजपेयी' थे। इनका जन्म संवत् 1855 में मुअज्जमाबाद, ज़िला, फतेहपुर में हुआ था। इनके पिता 'मनीराम जी' भी अच्छे कवि थे। ये कुछ दिनों तक दरभंगा और फिर 6 वर्ष तक जोधपुर नरेश 'महाराज मानसिंह' के यहाँ रहे। अंत में ये 'पटियाला नरेश' 'महाराज कर्मसिंह' के यहाँ गए और जीवन भर पटियाला में ही रहे। इनका देहांत संवत् 1932 में हुआ। अत: ये 'महाराज नरेंद्र सिंह' के समय तक वर्तमान थे और उन्हीं के आदेश से इन्होंने अपना प्रसिद्ध 'वीरकाव्य' 'हम्मीरहठ' बनाया। इसके अतिरिक्त इनके रचे ग्रंथों के नाम ये हैं -
- विवेकविलास,
- रसिकविनोद,
- हरिभक्तिविलास,
- नखशिख,
- वृंदावनशतक,
- गृहपंचाशिका,
- ताजकज्योतिष,
- माधावी वसंत।
- भाषा
चंद्रशेखर का साहित्यिक भाषा पर बड़ा भारी अधिकार था। अनुप्रास की योजना प्रचुर होने पर भी भद्दी कहीं नहीं हुई, सर्वत्र रस में सहायक ही है। युद्ध, मृगया आदि के वर्णन तथा संवाद आदि सब बड़ी मर्मज्ञता से रखे गए हैं। जिस रस का वर्णन है ठीक उसके अनुकूल पदविन्यास है। जहाँ श्रृंगार का प्रसंग है वहाँ यही प्रतीत होता है कि किसी सर्वश्रेष्ठ श्रृंगारी कवि की रचना पढ़ रहे हैं। -
उदै भानु पच्छिम प्रतच्छ, दिन चंद प्रकासै।
उलटि गंग बरु बहै, काम रति प्रीति विनासै
तजै गौरि अरधांग, अचल धा्रुव आसन चल्लै।
अचल पवन बरु होय, मेरु मंदर गिरिहल्लै
सुरतरु सुखाय, लोमस मरै, मीर! संक सब परिहरौ।
मुखबचन बीर हम्मीर को बोलि न यह कबहूँटरौ
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 267-69।
बाहरी कड़ियाँ
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