अदम गोंडवी: Difference between revisions
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'''अदम गोंडवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Adam Gondvi'', जन्म- [[22 अक्टूबर]], [[1947]], गोंडा, [[उत्तर प्रदेश]]; मृत्यु- [[18 दिसंबर]], [[2011]]) भारतीय कवि थे। घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफेद गमछा। मंच पर मुशायरों के दौरान जब अदम गोंडवी ठेठ गंवई अंदाज़में हुंकारते थे तो सुनने वालों का कलेजा चीर कर रख देते थे। जाहिर है कि जब शायरी में आम आवाम का दर्द बसता हो, शोषित-कमजोर लोगों को अपनी आवाज उसमें सुनाई देती हो तो ऐसी हुंकार कलेजा क्यों नहीं चीरेगी? अदम गोंडवी की पहचान जीवन भर आम आदमी के शायर के रूप में ही रही। उन्होंने [[हिंदी]] [[ग़ज़ल]] के क्षेत्र में हिंदुस्तान के कोने-कोने में अपनी पहचान बनाई थी। | |||
==परिचय== | ==परिचय== | ||
22 अक्तूबर, 1947 को [[गोस्वामी तुलसीदास]] के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में देवी कलि सिंह और मांडवी सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर ‘अदम गोंडवी’ के नाम से विख्यात हुए। अदम गोंडवी [[कबीर]] परंपरा के [[कवि]] थे। [[दुष्यंत कुमार]] ने अपनी गजलों से शायरी की जिस नई राजनीति की शुरुआत की थी, अदम गोंडवी ने उसे मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की। उस मुकाम तक, जहां से एक-एक चीज बिना धुंधलके के पहचानी जा सके।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.khulasaa.in/khaskhabar/adam-gondvi-biography-in-hindi/ |title=कबीर परंपरा के कवि और आम आदमी के शायर|accessmonthday=25 अक्टूबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=khulasaa.in |language=हिंदी}}</ref> | 22 अक्तूबर, 1947 को [[गोस्वामी तुलसीदास]] के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में देवी कलि सिंह और मांडवी सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर ‘अदम गोंडवी’ के नाम से विख्यात हुए। अदम गोंडवी [[कबीर]] परंपरा के [[कवि]] थे। [[दुष्यंत कुमार]] ने अपनी गजलों से शायरी की जिस नई राजनीति की शुरुआत की थी, अदम गोंडवी ने उसे मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की। उस मुकाम तक, जहां से एक-एक चीज बिना धुंधलके के पहचानी जा सके।<ref name="pp">{{cite web |url=https://www.khulasaa.in/khaskhabar/adam-gondvi-biography-in-hindi/ |title=कबीर परंपरा के कवि और आम आदमी के शायर|accessmonthday=25 अक्टूबर|accessyear=2020 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=khulasaa.in |language=हिंदी}}</ref> | ||
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अदम गोंडवी कवि थे और उन्हें [[कविता]] में गंवई जिंदगी की बजबजाहट, लिजलिजाहट और शोषण के नग्न रूपों को उधेड़ने में महारत हासिल थी। वह अपने गांव के यथार्थ के बारे में कहा करते थे- "फटे कपड़ों में तन ढ़ाके गुजरता है जहां कोई/समझ लेना वो पगडंडी ‘अदम’ के गांव जाती है।" | अदम गोंडवी कवि थे और उन्हें [[कविता]] में गंवई जिंदगी की बजबजाहट, लिजलिजाहट और शोषण के नग्न रूपों को उधेड़ने में महारत हासिल थी। वह अपने गांव के यथार्थ के बारे में कहा करते थे- "फटे कपड़ों में तन ढ़ाके गुजरता है जहां कोई/समझ लेना वो पगडंडी ‘अदम’ के गांव जाती है।" | ||
==जन-जन के कवि== | ==जन-जन के कवि== | ||
अदम गोंडवी जब मुशायरे के मंच से अपनी रचनाएं पढ़ते थे तो न सिर्फ उसमें व्यवस्था के प्रति तीक्ष्ण व्यंग्य होता था बल्कि वे सीधे-साधे लोगों के दिलों में बस जाती थीं। यही वजह है कि वे जन-जन के कवि बन गए थे। अदम गोंडवी की शायरी में आम आदमी की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद था। उनकी शायरी न हम वाह करने का अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है। सीधे-सीधे लफ्जों में बेतकल्लुफ विचार उसमें होते थे। निपट गंवई | अदम गोंडवी जब मुशायरे के मंच से अपनी रचनाएं पढ़ते थे तो न सिर्फ उसमें व्यवस्था के प्रति तीक्ष्ण व्यंग्य होता था बल्कि वे सीधे-साधे लोगों के दिलों में बस जाती थीं। यही वजह है कि वे जन-जन के कवि बन गए थे। अदम गोंडवी की शायरी में आम आदमी की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद था। उनकी शायरी न हम वाह करने का अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है। सीधे-सीधे लफ्जों में बेतकल्लुफ विचार उसमें होते थे। निपट गंवई अंदाज़में महानगरीय चकाचैंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदम गोंडवी की अदा सबसे जुदा और सबसे विलक्षण थी। | ||
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Latest revision as of 06:41, 10 February 2021
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अदम गोंडवी (अंग्रेज़ी: Adam Gondvi, जन्म- 22 अक्टूबर, 1947, गोंडा, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 18 दिसंबर, 2011) भारतीय कवि थे। घुटनों तक मटमैली धोती, सिकुड़ा मटमैला कुरता और गले में सफेद गमछा। मंच पर मुशायरों के दौरान जब अदम गोंडवी ठेठ गंवई अंदाज़में हुंकारते थे तो सुनने वालों का कलेजा चीर कर रख देते थे। जाहिर है कि जब शायरी में आम आवाम का दर्द बसता हो, शोषित-कमजोर लोगों को अपनी आवाज उसमें सुनाई देती हो तो ऐसी हुंकार कलेजा क्यों नहीं चीरेगी? अदम गोंडवी की पहचान जीवन भर आम आदमी के शायर के रूप में ही रही। उन्होंने हिंदी ग़ज़ल के क्षेत्र में हिंदुस्तान के कोने-कोने में अपनी पहचान बनाई थी।
परिचय
22 अक्तूबर, 1947 को गोस्वामी तुलसीदास के गुरु स्थान सूकर क्षेत्र के करीब परसपुर (गोंडा) के आटा ग्राम में देवी कलि सिंह और मांडवी सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर ‘अदम गोंडवी’ के नाम से विख्यात हुए। अदम गोंडवी कबीर परंपरा के कवि थे। दुष्यंत कुमार ने अपनी गजलों से शायरी की जिस नई राजनीति की शुरुआत की थी, अदम गोंडवी ने उसे मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश की। उस मुकाम तक, जहां से एक-एक चीज बिना धुंधलके के पहचानी जा सके।[1]
अदम गोंडवी कवि थे और उन्हें कविता में गंवई जिंदगी की बजबजाहट, लिजलिजाहट और शोषण के नग्न रूपों को उधेड़ने में महारत हासिल थी। वह अपने गांव के यथार्थ के बारे में कहा करते थे- "फटे कपड़ों में तन ढ़ाके गुजरता है जहां कोई/समझ लेना वो पगडंडी ‘अदम’ के गांव जाती है।"
जन-जन के कवि
अदम गोंडवी जब मुशायरे के मंच से अपनी रचनाएं पढ़ते थे तो न सिर्फ उसमें व्यवस्था के प्रति तीक्ष्ण व्यंग्य होता था बल्कि वे सीधे-साधे लोगों के दिलों में बस जाती थीं। यही वजह है कि वे जन-जन के कवि बन गए थे। अदम गोंडवी की शायरी में आम आदमी की गुर्राहट और आक्रामक मुद्रा का सौंदर्य मिसरे-मिसरे में मौजूद था। उनकी शायरी न हम वाह करने का अवसर देती है और न आह भरने की मजबूरी परोसती है। सीधे-सीधे लफ्जों में बेतकल्लुफ विचार उसमें होते थे। निपट गंवई अंदाज़में महानगरीय चकाचैंध और चमकीली कविताई को हैरान कर देने वाली अदम गोंडवी की अदा सबसे जुदा और सबसे विलक्षण थी।
रचनाएं
अदम गोंडवी की रचनाएं हमेशा लोगों को प्रेरणा देती रहेंगी। उन्होंने अपनी बेबाक रचनाओं से राजनेताओं व अफसरों पर भी बहुत ही निडरता से कटाक्ष करते हुए लिखा है[2]-
- सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे
सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे, ये अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।
मुल्क जाए भाड़ में इससे उन्हें मतलब नहीं, एक ही ख्वाहिश है कि कुनबे में मुख्तारी रहे।
महज तनख्वाह से निबटेंगे क्या नखरे लुगाई के, हजारों रास्ते हैं सिन्हा साहब की कमाई के।
अपनी जीवंत गजल व शायरी से आम जनमानस व समाज के दबे, कुचले लोगों के दर्द को समाज के पटल पर अपनी लेखनी से बयां करने वाले अजीम शायर अदम गोंडवी ने गोंडा जनपद को अपने साहित्य के माध्यम से जो पहचान दिलाई है, लोग आज भी उनके कायल हैं।
- काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में।
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत,
इतना असर है खादी के उजले लिबास में।
आजादी का वो जश्न मनाएं तो किस तरह,
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में।
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें,
संसद बदल गई हैं यहां की नखास में।
जनता के पास एक ही चारा है बगावत,
- बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को।
सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खे कब तलक नारों से दस्तरखान को।
शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पुरस्कार व सम्मान
‘धरती की सतह पर’ व ‘समय से मुठभेड़’ जैसे चर्चित ग़ज़ल संग्रहों ने अदम गोंडवी को हिंदी भाषी क्षेत्रों में काफी ख्याति और सम्मान दिलाया। वर्ष 1998 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें 'दुष्यंत कुमार पुरस्कार' से नवाजा था।[1]
मृत्यु
यह दुर्भाग्य है कि आम आदमी की बात करने वाले अदम गोंडवी अपने जीवन के अंतिम दिनों में लीवर सिरोसिस की बीमारी से पीड़ित थे और 18 दिसम्बर, 2011 को इस आम आदमी के कवि का निधन हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 कबीर परंपरा के कवि और आम आदमी के शायर (हिंदी) khulasaa.in। अभिगमन तिथि: 25 अक्टूबर, 2020।
- ↑ अदम गोंडवी की जयंती आज (हिंदी) amarujala.com। अभिगमन तिथि: 25 अक्टूबर, 2020।