मंचित: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:25, 8 January 2012

मंचित मऊ (बुंदेलखंड) के रहने वाले ब्राह्मण थे और संवत् 1836 में वर्तमान थे। इन्होंने कृष्णचरित संबंधी दो पुस्तकें लिखी हैं, 'सुरभी दानलीला' और 'कृष्णायन'।

सुरभी दानलीला

'सुरभी दानलीला' में बाललीला, यमलार्जुन पतन और दानलीला का विस्तृत वर्णन सार छंद में किया गया है। इसमें श्रीकृष्ण का नखशिख भी बहुत अच्छा कहा गया है।

कृष्णायन

'कृष्णायन' तुलसीदास जी की 'रामायण' के अनुकरण पर दोहों चौपाइयों में लिखी गई है। इन्होंने गोस्वामी जी की पदावली तक का अनुकरण किया है। स्थान स्थान पर भाषा अनुप्रासयुक्त और संस्कृत गर्भित है, इससे ब्रजवासीदास की चौपाइयों की अपेक्षा इनकी चौपाइयाँ गोस्वामी जी की चौपाइयों से कुछ अधिक मेल खाती हैं। पर यह मेल केवल कहीं कहीं दिखाई पड़ जाता है। भाषा मर्मज्ञ को दोनों का भेद बहुत जल्दी स्पष्ट हो जाता है। इनकी भाषा ब्रज है, अवधी नहीं। उसमें वह सफाई और व्यवस्था कहाँ? कृष्णायन की अपेक्षा इनकी सुरभी दानलीला की रचना अधिक सरस है। -

कुंडल लोल अमोल कान के छुवत कपोलन आवैं।
डुलै आपसे खुलैं जोर छबि बरबस मनहिं चुरावैं
खौर बिसाल भाल पर सोभित केसर की चित्तभावैं।
ताके बीच बिंदु रोरी के, ऐसो बेस बनावैं
भ्रुकुटी बंक नैन खंजन से कंजन गंजनवारे।
मदभंजन खग मीन सदा जे मनरंजन अनियारे।[1]


अचरज अमित भयो लखि सरिता। दुतिय न उपमा कहि सम चरिता॥
कृष्णदेव कहँ प्रिय जमुना सी। जिमि गोकुल गोलोक प्रकासी॥
अति विस्तार पार पद पावन। उभय करार घाट मनभावन॥
बनचर बनज बिपुल बहु पच्छी। अलि अवली धुनि सुनि अति अच्छी॥
नाना जिनिस जीव सरि सेवैं। हिंसाहीन असन सुचि जैवैं॥


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सुरभी - दानलीला

आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 257।

बाहरी कड़ियाँ

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