खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "बाजार" to "बाज़ार")
m (Text replace - " सन " to " सन् ")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 8: Line 8:
|जन्म=[[21 फ़रवरी]], 1896  
|जन्म=[[21 फ़रवरी]], 1896  
|जन्म स्थान=मेदनीपुर ज़िला, बंगाल ([[पश्चिम बंगाल]])  
|जन्म स्थान=मेदनीपुर ज़िला, बंगाल ([[पश्चिम बंगाल]])  
|मृत्यु=[[15 अक्टूबर]], सन [[1961]]
|मृत्यु=[[15 अक्टूबर]], सन् [[1961]]
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[भारत]]
|मृत्यु स्थान=[[प्रयाग]], [[भारत]]
|मुख्य रचनाएँ=
|मुख्य रचनाएँ=
Line 33: Line 33:
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
    दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़,
चरने को चले ढोर - गाय - भैंस - भेड़,
    खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़--
खेलने लगे लड़के छेड़ - छेड़ -
    लड़कियाँ घरों को कर भासमान!
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!
    लोग गाँव-गाँव को चले,
लोग गाँव-गाँव को चले,
कोई बाज़ार, कोई बरगद के पेड़ के तले
कोई बाज़ार, कोई बरगद के पेड़ के तले
    जाँघिया-लँगोटा ले, सँभले,
जाँघिया - लँगोटा ले, सँभले,
    तगड़े-तगड़े सीधे नौजवान!
तगड़े - तगड़े सीधे नौजवान!
    पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
नहीं ख्याल आज कि भीगेगी चूनरी,
नहीं ख़्याल आज कि भीगेगी चुनरी,
    बातें करती हैं वे सब खड़ी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,
    चलते हैं नयनों के सधे बाण!  
चलते हैं नयनों के सधे बाण!  
</poem>
</poem>
{{Poemclose}}
{{Poemclose}}

Latest revision as of 14:05, 6 March 2012

खुला आसमान -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फ़रवरी, 1896
जन्म स्थान मेदनीपुर ज़िला, बंगाल (पश्चिम बंगाल)
मृत्यु 15 अक्टूबर, सन् 1961
मृत्यु स्थान प्रयाग, भारत
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की रचनाएँ

बहुत दिनों बाद खुला आसमान!
निकली है धूप, खुश हुआ जहान!
दिखी दिशाएँ, झलके पेड़,
चरने को चले ढोर - गाय - भैंस - भेड़,
खेलने लगे लड़के छेड़ - छेड़ -
लड़कियाँ घरों को कर भासमान!
लोग गाँव-गाँव को चले,
कोई बाज़ार, कोई बरगद के पेड़ के तले
जाँघिया - लँगोटा ले, सँभले,
तगड़े - तगड़े सीधे नौजवान!
पनघट में बड़ी भीड़ हो रही,
नहीं ख़्याल आज कि भीगेगी चुनरी,
बातें करती हैं वे सब खड़ी,
चलते हैं नयनों के सधे बाण!












संबंधित लेख