जानत नहिं लगि मैं -बिहारी लाल: Difference between revisions
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जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि | जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै। | ||
तुम तौ बधात ही तै वहै नाँध नाध्यौ है॥ | |||
लीजिये न छेहु निरगुन सौं न होइ नेहु। | |||
परबस देहु गेहु ये ही सुख साँध्यौ है॥ | |||
गोकुल के लोग पैं गुपाल न बिसार्यौ जाइ। | |||
रावरे कहे तौ क्यौं हूँ जोगो काँध काँध्यौ है॥ | |||
कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि काहु। | |||
हीरा छोड़ि डारि कै कसीरा गाँठि बाँध्यौ है॥ | |||
कीजिए न रारि ऊधौ देखिये विचारि | |||
Latest revision as of 07:11, 8 September 2011
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जानत नहिं लगि मैं मानिहौं बिलगि कहै। |
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