बनवारी: Difference between revisions

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'वार' कहन पायो नहीं, भई कटारी पार
'वार' कहन पायो नहीं, भई कटारी पार


आनि कै सलावत खाँ जोर कै जनाई बात,
आनि कै सलावत खाँ ज़ोर कै जनाई बात,
तोरि धार पंजर करेजे जाय करकी।
तोरि धार पंजर करेजे जाय करकी।
दिलीपति साहि को चलन चलिबे को भयो,  
दिलीपति साहि को चलन चलिबे को भयो,  
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Latest revision as of 07:57, 7 November 2017

बनवारी संवत् 1690 और 1700 के बीच वर्तमान थे। इनका विशेष वृत्त ज्ञात नहीं। इन्होंने महाराज जसवंत सिंह के बड़े भाई अमरसिंह की वीरता की बड़ी प्रशंसा की है। यह इतिहास प्रसिद्ध बात है कि एक बार शाहजहाँ के दरबार में सलावत खाँ ने किसी बात पर अमरसिंह को गँवार कह दिया, जिस पर उन्होंने चट तलवार खींचकर सलावत खाँ को वहीं मार डाला। इस घटना का बड़ा ओजपूर्ण वर्णन इनके इन पद्यों में मिलता है -

धान्य अमर छिति छत्रापति, अमर तिहारो मान।
साहजहाँ की गोद में, हन्यो सलावत खान
उत गकार मुख ते कढ़ी, इतै कढ़ी जमधार।
'वार' कहन पायो नहीं, भई कटारी पार

आनि कै सलावत खाँ ज़ोर कै जनाई बात,
तोरि धार पंजर करेजे जाय करकी।
दिलीपति साहि को चलन चलिबे को भयो,
गाज्यो गजसिंह को, सुनी जो बात बर की
कहै बनवारी बादसाही के तखत पास,
फरकि-फरकि लोथ लोथिन सों अरकी।
कर की बड़ाई, कै बड़ाई बाहिबे की करौं,
बाढ़ की बड़ाई, कै बड़ाई जमधार की

  • बनवारी कवि की श्रृंगार रस की कविता भी बड़ी चमत्कारपूर्ण होती थी। यमक लाने का ध्यान इन्हें विशेष रहा करता था -

नेह बर साने तेरे नेह बरसाने देखि,
यह बरसाने बर मुरली बजावैंगे।
साजु लाल सारी, लाल करैं लालसा री,
देखिबे की लालसारी, लाल देखे सुख पावैंगे
तू ही उरबसी, उरबसी नाहि और तिय,
कोटि उरबसी तजि तोसों चित लावैंगे।
सजे बनवारी बनवारी तन आभरन,
गोरे तन वारी बनवारी आज आवैंगे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 226।

बाहरी कड़ियाँ

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