अयोध्याप्रसाद खत्री: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "हिंदी" to "हिन्दी") |
||
Line 6: | Line 6: | ||
अयोध्या प्रसाद खत्री को पढ़ाने के लिए घर पर ही मौलवी आने लगे, फिर इनका दाखिला मुजफ़्फ़रपुर के ज़िला स्कूल में कराया गया। खत्री जी जब इंट्रेस में पढ़ रहे थे तो इनके पिता का देहांत हो गया। | अयोध्या प्रसाद खत्री को पढ़ाने के लिए घर पर ही मौलवी आने लगे, फिर इनका दाखिला मुजफ़्फ़रपुर के ज़िला स्कूल में कराया गया। खत्री जी जब इंट्रेस में पढ़ रहे थे तो इनके पिता का देहांत हो गया। | ||
==कार्यक्षेत्र== | ==कार्यक्षेत्र== | ||
खत्री जी को पिता के देहांत के बाद अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर दुकान संभालनी पड़ी, किंतु इस व्यवसाय में उनका मन न रमा और वे कुढ़नी माइनर स्कूल के शिक्षक हो गए। अपने स्कूल में | खत्री जी को पिता के देहांत के बाद अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर दुकान संभालनी पड़ी, किंतु इस व्यवसाय में उनका मन न रमा और वे कुढ़नी माइनर स्कूल के शिक्षक हो गए। अपने स्कूल में हिन्दी की पाठ्य-पुस्तकों का अभाव देख उन्हें सबसे पहले हिन्दी [[व्याकरण]] की रचना की तथा स्कूल की नौकरी त्यागकर मुजफ़्फ़रपुर में अंग्रेज़ों को [[हिन्दी]] पढ़ाने लगे। एक अंग्रेज़ अधिकारी ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें लिपिक के पद पर बहाल कर लिया, जहाँ वे जल्द ही अपनी प्रतिभा के बल पर कलैक्टर के पेशकर हो गए जिस पर यह जीवनपर्यंत कार्यरत रहे। इसी पद पर रहते हुए खत्री जी ने खड़ी बोली हिन्दी के लिए अपना सर्वस्व होम किया। | ||
==शैली== | ==शैली== | ||
ये खड़ी बोली पद्य की चार शैलियाँ मानते थे- मौलवी, मुंशी, पंडित और अध्यापक शैलियाँ। इन्होंने ''खड़ी बोली का पद्य'' ([[1880]] ई., दो भाग) में उक्त शैलियों की कविताओं का संकलन किया था। | ये खड़ी बोली पद्य की चार शैलियाँ मानते थे- मौलवी, मुंशी, पंडित और अध्यापक शैलियाँ। इन्होंने ''खड़ी बोली का पद्य'' ([[1880]] ई., दो भाग) में उक्त शैलियों की कविताओं का संकलन किया था। |
Revision as of 14:04, 9 April 2011
अयोध्या प्रसाद खत्री (जन्म-1857 ई., सिकंदरपुर, ज़िला बलिया (उत्तर प्रदेश); मृत्यु- 4 जनवरी, 1905 ई., मुजफ़्फ़रपुर, बिहार) हिन्दी खड़ी बोली के आरम्भिक प्रबल समर्थक थे। यह मुजफ़्फ़रपुर (बिहार) में कचहरी में पेशकार थे।
जीवन परिचय
अयोध्या प्रसाद खत्री का जन्म 1857 ई. में सिकंदरपुर, ज़िला बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। उत्तर प्रदेश सत्तावन के सिपाही विद्रोह के कारण अंग्रेज़ों के जुल्म का ज़्यादा शिकार हुआ, जिसके कारण इनके पिता श्री जगजीवन लाल खत्री अपने गाँव सिकंदरपुर से अन्य परिवारों की तरह विस्थापित होकर मुजफ़्फ़रपुर (बिहार) आकर बस गए और जीवन व्यतीत करने के लिए कल्याणी में किताबों की दुकान खोल ली। अयोध्या प्रसाद खत्री के पिता ने बचपन से ही इनको सूरदास, तुलसी के दोहे सुनाए और इनकी माता ने इनको गीता कंठस्थ करा दी।
शिक्षा
अयोध्या प्रसाद खत्री को पढ़ाने के लिए घर पर ही मौलवी आने लगे, फिर इनका दाखिला मुजफ़्फ़रपुर के ज़िला स्कूल में कराया गया। खत्री जी जब इंट्रेस में पढ़ रहे थे तो इनके पिता का देहांत हो गया।
कार्यक्षेत्र
खत्री जी को पिता के देहांत के बाद अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर दुकान संभालनी पड़ी, किंतु इस व्यवसाय में उनका मन न रमा और वे कुढ़नी माइनर स्कूल के शिक्षक हो गए। अपने स्कूल में हिन्दी की पाठ्य-पुस्तकों का अभाव देख उन्हें सबसे पहले हिन्दी व्याकरण की रचना की तथा स्कूल की नौकरी त्यागकर मुजफ़्फ़रपुर में अंग्रेज़ों को हिन्दी पढ़ाने लगे। एक अंग्रेज़ अधिकारी ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें लिपिक के पद पर बहाल कर लिया, जहाँ वे जल्द ही अपनी प्रतिभा के बल पर कलैक्टर के पेशकर हो गए जिस पर यह जीवनपर्यंत कार्यरत रहे। इसी पद पर रहते हुए खत्री जी ने खड़ी बोली हिन्दी के लिए अपना सर्वस्व होम किया।
शैली
ये खड़ी बोली पद्य की चार शैलियाँ मानते थे- मौलवी, मुंशी, पंडित और अध्यापक शैलियाँ। इन्होंने खड़ी बोली का पद्य (1880 ई., दो भाग) में उक्त शैलियों की कविताओं का संकलन किया था।
मृत्यु
अयोध्या प्रसाद खत्री जी का देहांत 4 जनवरी, 1905 ई. को मुजफ़्फ़रपुर, बिहार में हुआ था।
|
|
|
|
|