मंडन: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('*मंडन जैतपुर, बुंदेलखंड के रहने वाले थे और संवत 1716 मे...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (श्रेणी:नया पन्ना; Adding category Category:रीति काल (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 19: | Line 19: | ||
==सम्बंधित लेख== | ==सम्बंधित लेख== | ||
{{भारत के कवि}} | {{भारत के कवि}} | ||
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]] | ||
[[Category:रीति काल]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 09:55, 10 May 2011
- मंडन जैतपुर, बुंदेलखंड के रहने वाले थे और संवत 1716 में राजा मंगदसिंह के दरबार में थे।
- इनके फुटकर कवित्त सवैये बहुत सुने जाते हैं, किंतु अब तक इनका कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ है। पुस्तकों की खोज करने पर इनके पाँच ग्रंथों का पता चलता है -
- रसरत्नावली,
- रसविलास,
- जनक पचीसी,
- जानकी जू को ब्याह,
- नैन पचासा।
- प्रथम दो ग्रंथ रस निरूपण पर हैं, यह उनके नामों से ही ज्ञात हो जाता है। संग्रह ग्रंथों में इनके कवित्त सवैये मिलते हैं। जेइ जेइ सुखद दुखद अब तेइ तेइ कवि मंडन बिछुरत जदुपत्ती यह पद भी इनका है। उन्होंने कुछ पद भी रचे थे। जो पद्य इनके मिलते हैं उनसे ये सरस कल्पना के भावुक कवि लगते हैं। इनकी भाषा बड़ी स्वाभाविक, चलती और व्यंजनापूर्ण थी। उसमें अन्य कवियों का सा 'शब्दाडंबर' नहीं दिखाई पड़ता -
अलि हौं तो गई जमुना जल को, सो कहा कहौं वीर! विपत्ति परी।
घहराय कै कारी घटा उनई, इतनेई में गागरि सीस धरी
रपटयो पग, घाट चढयो न गयो, कवि मंडन ह्वै कै बिहाल गिरी।
चिर जीवहु नंद के बारो, अरी, गहि बाँह गरीब ने ठाढ़ी करी
|
|
|
|
|