सुखदेव मिश्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "जाहिर" to "ज़ाहिर")
Line 27: Line 27:
जोहैं जहाँ मगु नंदकुमार तहाँ चलि चंदमुखी सुकुमार है।
जोहैं जहाँ मगु नंदकुमार तहाँ चलि चंदमुखी सुकुमार है।
मोतिन ही को कियो गहनो सब फूलि रही जनु कुंद की डार है
मोतिन ही को कियो गहनो सब फूलि रही जनु कुंद की डार है
भीतर ही जो लखी सो लखी अब बाहिर जाहिर होति न दार है।
भीतर ही जो लखी सो लखी अब बाहिर ज़ाहिर होति न दार है।
जोन्ह सी जोन्हैं गई मिलि यों मिलि जाति ज्यौं दूध में दूध की धार है</poem></blockquote>
जोन्ह सी जोन्हैं गई मिलि यों मिलि जाति ज्यौं दूध में दूध की धार है</poem></blockquote>



Revision as of 16:35, 8 July 2011

  • सुखदेव मिश्र दौलतपुर, ज़िला रायबरेली के रहने वाले मुग़ल कालीन कवि थे।
  • उसी ग्राम के निवासी सुप्रसिद्ध पं. महावीरप्रसाद द्विवेदी ने इनका एक जीवनवृत्त 'सरस्वती' पत्रिका में लिखा था।
  • सुखदेव मिश्र का जन्मस्थान 'कंपिला' था, जिसका वर्णन इन्होंने अपने 'वृत्तविचार' में किया है।
  • इनका कविता काल संवत 1720 से 1760 तक माना जा सकता है।
  • इनके सात ग्रंथों का पता है -
  1. वृत्तविचार (संवत् 1728),
  2. छंदविचार,
  3. फाजिलअलीप्रकाश,
  4. रसार्णव,
  5. श्रृंगारलता,
  6. अध्यात्मप्रकाश (संवत् 1755),
  7. दशरथ राय।
  • 'अध्यात्मप्रकाश' में सुखदेव मिश्र ने ब्रह्मज्ञान संबंधी बातें कही हैं, जिससे यह जनश्रुति पुष्ट होती है कि वे एक नि:स्पृह विरक्त साधु के रूप में रहते थे।
  • काशी से विद्या अध्ययन करके लौटने पर ये 'असोथर', ज़िला, फ़तेहपुर के राजा भगवंतराय खीची तथा डौडिया खेरे के राव मर्दनसिंह के यहाँ रहे।
  • कुछ दिनों तक सुखदेव मिश्र औरंगज़ेब के मंत्री 'फाज़िलअली शाह' के यहाँ भी रहे। अंत में मुरारमऊ के राजा देवीसिंह के यहाँ गए जिनके बहुत आग्रह पर ये सकुटुंब दौलतपुर में जा बसे।
  • राजा राजसिंह गौड़ ने इन्हें कविराज की उपाधि दी थी। वास्तव में ये बहुत प्रौढ़ कवि थे और आचार्यत्व भी इनमें पूरा था।
  • छंद शास्त्र पर इनका-सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया है। सुखदेव मिश्र काव्यकला में भी निपुण थे। 'फाज़िलअली प्रकाश' और 'रसार्णव' दोनों में श्रृंगार रस के उदाहरण बहुत ही सुंदर हैं -

ननद निनारी, सासु मायके सिधारी,
अहै रैन अंधियारी भरी, सूझत न करु है।
पीतम को गौन कविराज न सोहात भौन,
दारुन बहत पौन, लाग्यो मेघ झरु है
संग ना सहेली बैस नवल अकेली,
तन परी तलबेली महा, लाग्यो मैन सरु है।
भई अधिरात, मेरो जियरा डरात,
जागु जागु रे बटोही! यहाँ चोरन को डरु है

जोहैं जहाँ मगु नंदकुमार तहाँ चलि चंदमुखी सुकुमार है।
मोतिन ही को कियो गहनो सब फूलि रही जनु कुंद की डार है
भीतर ही जो लखी सो लखी अब बाहिर ज़ाहिर होति न दार है।
जोन्ह सी जोन्हैं गई मिलि यों मिलि जाति ज्यौं दूध में दूध की धार है


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

सम्बंधित लेख