बेनी: Difference between revisions

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*बेनी [[रीति काल|रीति कालीन]] कवि थे।  
*बेनी [[रीति काल]] के कवि थे।  
*बेनी 'असनी' के बंदीजन थे और इनका समय संवत 1700 के आसपास का था।  
*बेनी 'असनी' के बंदीजन थे और इनका समय संवत 1700 के आसपास का था।  
*इनका कोई भी ग्रंथ नहीं मिलता, किंतु फुटकर कवित्त बहुत से सुने जाते हैं, जिनसे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नख शिख और षट्ऋतु पर पुस्तकें लिखी होंगी।  
*इनका कोई भी ग्रंथ नहीं मिलता, किंतु फुटकर कवित्त बहुत से सुने जाते हैं, जिनसे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नख शिख और षट्ऋतु पर पुस्तकें लिखी होंगी।  

Revision as of 08:04, 15 May 2011

  • बेनी रीति काल के कवि थे।
  • बेनी 'असनी' के बंदीजन थे और इनका समय संवत 1700 के आसपास का था।
  • इनका कोई भी ग्रंथ नहीं मिलता, किंतु फुटकर कवित्त बहुत से सुने जाते हैं, जिनसे यह अनुमान होता है कि इन्होंने नख शिख और षट्ऋतु पर पुस्तकें लिखी होंगी।
  • कविता इनकी साधारणत: अच्छी होती थी।
  • भाषा चलती, कामचलाऊ होने पर भी अनुप्रास युक्त होती थी -

छहरैं सिर पै छवि मोरपखा, उनकी नथ के मुकुता थहरैं।
फहरै पियरो पट बेनी इतै, उनकी चुनरी के झबा झहरैं
रसरंग भिरे अभिरे हैं तमाल दोऊ रसख्याल चहैं लहरैं।
नित ऐसे सनेह सों राधिका स्याम हमारे हिए में सदा बिहरैं

कवि बेनी नई उनई है घटा, मोरवा बन बोलत कूकन री।
छहरै बिजुरी छितिमंडल छ्वै, लहरै मन मैन भभूकन री।
पहिरौ चुनरी चुनिकै दुलही, सँग लाल के झूलहु झूकन री।
ऋतु पावस यों ही बितावत हौ, मरिहौ, फिरि बावरि! हूकन री


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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