ग्वाल कवि: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "जिंद" to "ज़िंद")
Line 63: Line 63:
==सम्बंधित लेख==
==सम्बंधित लेख==
{{भारत के कवि}}
{{भारत के कवि}}
[[Category:रीति काल]]
[[Category:रीति काल]][[Category:रीतिकालीन कवि]]
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:कवि]][[Category:साहित्य_कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 09:47, 14 October 2011

  • ग्वाल कवि , मथुरा के रहने वाले बंदीजन सेवाराम के पुत्र थे।
  • ये ब्रजभाषा के अच्छे कवि हुए हैं।
  • इनका कविता काल संवत 1879 से संवत 1918 तक है।
  • इन्होंने पहला ग्रंथ 'यमुना लहरी' संवत 1879 में और अंतिम ग्रंथ 'भक्तभावना' संवत 1919 में बनाया। रीति ग्रंथ इन्होंने चार लिखे हैं -
  1. रसिकानंद [1],
  2. रसरंग [2],
  3. कृष्ण जू को नखशिख [3] और
  4. दूषणदर्पण [4]
  • इनके अतिरिक्त इनके दो ग्रंथ और मिले हैं -
  1. हम्मीर हठ [5] और
  2. गोपीपच्चीसी।
  3. 'राधामाधव मिलन' और
  4. 'राधा अष्टक'।
  • 'कवि हृदय विनोद' इनकी बहुत सी कविताओं का संग्रह है।
  • रीति काल का प्रभाव इन पर इतना अधिक था कि इन्हें 'यमुना लहरी' नामक देवस्तुति में भी नवरस और षट् ऋतु का वर्णन है।
  • भाषा इनकी अच्छी और व्यवस्थित है। षट् ऋतुओं का वर्णन इन्होंने विस्तृत किया है। इनके ऋतुवर्णन के कवित्त लोगों के मुँह से अधिक सुने जाते हैं जिसमें बहुत से भोगविलास के अमीरी सामान भी गिनाए गए हैं।
  • ग्वाल कवि ने देशाटन अच्छा किया था और इन्हें भिन्न भिन्न प्रांतों की बोलियों का अच्छा ज्ञान हो गया था। इन्होंने ठेठ पूरबी हिन्दी, गुजराती और पंजाबी भाषा में भी कुछ कवित्त, सवैया लिखे हैं। फ़ारसी अरबी शब्दों का इन्होंने बहुत प्रयोग किया है।
  • यह एक विद्वान और कुशल कवि थे पर कुछ फक्कड़पन लिए हुए।


ग्रीषम की गजब धुकी है धूप धाम धाम,
गरमी झुकी है जाम जाम अति तापिनी।
भीजे खसबीजन झलेहू ना सुखात स्वेद,
गात न सुहात, बात दावा सी डरापिनी
ग्वाल कवि कहैं कोरे कुंभन तें कूपन तें,
लै लै जलधार बार बार मुख थापिनी।
जब पियो तब पियो, अब पियो फेर अब,
पीवत हूँ पीवत मिटै न प्यास पापिनी

मोरन के सोरन की नैको न मरोर रही,
घोर हू रही न घन घने या फरद की।
अंबर अमल, सर सरिता विमल भल
पंक को न अंक औ न उड़न गरद की
ग्वाल कवि चित्त में चकोरन के चैन भए,
पंथिन की दूर भई, दूषन दरद की।
जल पर, थल पर, महल, अचल पर,
चाँदी सी चमक रही चाँदनी सरद की

जाकी खूबखूबी खूब खूबन की खूबी यहाँ,
ताकी खूबखूबी खूबखूबी नभ गाहना।
जाकी बदजाती बदजाती यहाँ चारन में,
ताकी बदजाती बदजाती ह्वाँ उराहना
ग्वाल कवि वे ही परमसिद्ध सिद्ध जो है जग,
वे ही परसिद्ध ताकी यहाँ ह्वाँ सराहना।
जाकी यहाँ चाहना है ताकी वहाँ चाहनाहै,
जाकी यहाँ चाह ना है ताकी वहाँ चाहना

दिया है खुदा ने खूब खुसी करो ग्वाल कवि,
खाव पियो, देव लेव, यहीं रह जाना है।
राजा राव उमराव केते बादशाह भए,
कहाँ ते कहाँ को गए, लग्यो न ठिकाना है
ऐसी ज़िंदगानी के भरोसे पै गुमान ऐसे,
देस देस घूमि घूमि मन बहलाना है।
आए परवाना पर चलै ना बहाना, यहाँ,
नेकी कर जाना, फेर आना है न जानाहै



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अलंकार
  2. संवत 1904
  3. संवत 1884
  4. संवत 1891
  5. संवत 1881

सम्बंधित लेख