उक्ति -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला: Difference between revisions
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कुछ न हुआ, न हो | कुछ न हुआ, | ||
मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल | न हो, | ||
मुझे विश्व का सुख, श्री, | |||
यदि केवल पास तुम रहो! | |||
मेरे नभ के बादल यदि न कटे- | मेरे नभ के बादल यदि न कटे- | ||
चन्द्र रह गया ढका, | |||
तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे | तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे | ||
लेश गगन-भास का, | |||
रहेंगे अधर हँसते, | |||
पथ पर, | |||
रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम | तुम हाथ यदि गहो। | ||
बहु-रस साहित्य विपुल यदि न पढ़ा- | |||
मन्द सबों ने कहा, | |||
मेरा काव्यानुमान यदि न बढ़ा- | |||
ज्ञान, जहाँ का रहा, | |||
रहे, समझ है मुझमें पूरी, तुम | रहे, | ||
समझ है मुझमें पूरी, | |||
तुम कथा यदि कहो। | |||
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Revision as of 14:00, 19 December 2011
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कुछ न हुआ, |
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