उपदेश का अंग -कबीर: Difference between revisions

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बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार ।
बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार।
दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार ॥1॥
दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार॥1॥


`कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार ।
`कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार।
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार ॥2॥
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार॥2॥


ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ ।
ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होइ ॥3॥
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होइ॥3॥


कोइ एक राखै सावधां, चेतनि पहरै जागि ।
कोइ एक राखै सावधां, चेतनि पहरै जागि।
बस्तर बासन सूं खिसै, चोर न सकई लागि ॥4॥
बस्तर बासन सूं खिसै, चोर न सकई लागि॥4॥


जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होइ ।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होइ।
या आपा को डारिदे, दया करै सब कोइ ॥5॥
या आपा को डारिदे, दया करै सब कोइ॥5॥


आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक ।
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की एक ॥6॥
कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की एक॥6॥
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Latest revision as of 14:10, 19 December 2011

उपदेश का अंग -कबीर
कवि कबीर
जन्म 1398 (लगभग)
जन्म स्थान लहरतारा ताल, काशी
मृत्यु 1518 (लगभग)
मृत्यु स्थान मगहर, उत्तर प्रदेश
मुख्य रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कबीर की रचनाएँ

बैरागी बिरकत भला, गिरही चित्त उदार।
दुहुं चूका रीता पड़ैं , वाकूं वार न पार॥1॥

`कबीर' हरि के नाव सूं, प्रीति रहै इकतार।
तो मुख तैं मोती झड़ैं, हीरे अन्त न फार॥2॥

ऐसी बाणी बोलिये, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन को सुख होइ॥3॥

कोइ एक राखै सावधां, चेतनि पहरै जागि।
बस्तर बासन सूं खिसै, चोर न सकई लागि॥4॥

जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होइ।
या आपा को डारिदे, दया करै सब कोइ॥5॥

आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह `कबीर' नहिं उलटिए, वही एक की एक॥6॥






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