निरंजन धन तुम्हरो दरबार -कबीर: Difference between revisions
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रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार । | रंगमहल में बसें मसखरे, पास तेरे सरदार । | ||
धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।। | धूर-धूप में साधो विराजें, होये भवनिधि पार ।। | ||
वेश्या ओढे़ | वेश्या ओढे़ ख़ासा मखमल, गल मोतिन का हार । | ||
पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार ।। | पतिव्रता को मिले न खादी सूखा ग्रास अहार ।। | ||
पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार । | पाखंडी को जग में आदर, सन्त को कहें लबार । |
Revision as of 13:23, 1 October 2012
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निरंजन धन तुम्हरो दरबार । |
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