म्हारे घर -मीरां: Difference between revisions

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हमरे चीर दे बनवारी॥ध्रु०॥
म्हारे घर होता जाज्यो राज।
लेकर चीर कदंब पर बैठे। हम जलमां नंगी उघारी॥१॥
अबके जिन टाला दे जाओ सिर पर राखूं बिराज।।
तुमारो चीर तो तब नही। देउंगा हो जा जलजे न्यारी॥२॥
म्हे तो जनम जनमकी दासी थे म्हांका सिरताज।
ऐसी प्रभुजी क्यौं करनी। तुम पुरुख हम नारी॥३॥
पावणड़ा म्हांके भलां ही पधारया सब ही सुघारण काज।।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। तुम जीते हम हारी॥४॥
म्हे तो बुरी छां थांके भली छै घणेरी तुम हो एक रसराज।
थाने हम सब ही की चिंता (तुम) सबके हो गरीब निवाज।।
सबके मुकुट-सिरोमणि सिर पर मानो पुन्य की पाज।
मीराके प्रभु गिरधर नागर बांह गहे की लाज।।
 





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म्हारे घर -मीरां
कवि मीरांबाई
जन्म 1498
जन्म स्थान मेरता, राजस्थान
मृत्यु 1547
मुख्य रचनाएँ बरसी का मायरा, गीत गोविंद टीका, राग गोविंद, राग सोरठ के पद
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
मीरांबाई की रचनाएँ

म्हारे घर होता जाज्यो राज।
अबके जिन टाला दे जाओ सिर पर राखूं बिराज।।
म्हे तो जनम जनमकी दासी थे म्हांका सिरताज।
पावणड़ा म्हांके भलां ही पधारया सब ही सुघारण काज।।
म्हे तो बुरी छां थांके भली छै घणेरी तुम हो एक रसराज।
थाने हम सब ही की चिंता (तुम) सबके हो गरीब निवाज।।
सबके मुकुट-सिरोमणि सिर पर मानो पुन्य की पाज।
मीराके प्रभु गिरधर नागर बांह गहे की लाज।।


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