कृष्णदास पयहारी: Difference between revisions
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*कृष्णदास जी [[रामानंद]] के शिष्य अनंतानंद के शिष्य थे और [[आमेर]] के राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के दीक्षागुरू थे। | *कृष्णदास जी [[रामानंद]] के शिष्य अनंतानंद के शिष्य थे और [[आमेर]] के राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के दीक्षागुरू थे। |
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कृष्णदास पयहारी 'रामानंद संप्रदाय' के प्रमुख आचार्य और कवि थे। इनका समय सोलहवीं शती ई. कहा जाता है। ये जाति से ब्राह्मण थे और जयपुर, राजस्थान के निकट 'गलता' नामक स्थान पर रहते थे।[1]
- कृष्णदास जी रामानंद के शिष्य अनंतानंद के शिष्य थे और आमेर के राजा पृथ्वीराज की रानी बालाबाई के दीक्षागुरू थे।
- कहा जाता है कि इन्होंने 'कापालिक संप्रदाय' के गुरु चतुरनाथ को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। इससे इन्हें 'महंत' का पद प्राप्त हुआ था।
- ये संस्कृत भाषा के पंडित थे और ब्रजभाषा के कवि थे।
- 'ब्रह्मगीता' तथा 'प्रेमसत्वनिरूप' कृष्णदास पयहारी के मुख्य ग्रंथ हैं।
- ब्रजभाषा में रचित इनके अनेक पद प्राप्त होते हैं।
- यह भी कहा जाता है कि कृष्णदास पयहारी अपने भोजन में मात्र दूध का ही सेवन करते थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कृष्णदास पयहारी (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 09 अप्रैल, 2014।