अलबेली अलि: Difference between revisions
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'''अलबेली अलि''' [[रीतिकाल|रीतिकालीन]] कवि थे। इनका कविता काल विक्रम की 18वीं शताब्दी का अंतिम भाग आता है। यह विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के आचार्य 'वंशी अलि' के शिष्य थे। वंशी अलि अपनी उपासनापद्धति को नवीन रूप देने वाले महात्मा के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। ये विष्णु स्वामी की दार्शनिक विचारधारा से प्रभावित थे। यह [[राधा]]-[[कृष्ण]] के भक्त थे। अलबेली अलि [[संस्कृत]] के परंपरागत | '''अलबेली अलि''' [[रीतिकाल|रीतिकालीन]] कवि थे। इनका कविता काल विक्रम की 18वीं शताब्दी का अंतिम भाग आता है। यह विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के आचार्य 'वंशी अलि' के शिष्य थे। वंशी अलि अपनी उपासनापद्धति को नवीन रूप देने वाले महात्मा के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। ये विष्णु स्वामी की दार्शनिक विचारधारा से प्रभावित थे। यह [[राधा]]-[[कृष्ण]] के भक्त थे। अलबेली अलि [[संस्कृत]] के परंपरागत विद्वान् थे किंतु इन्हे ब्रजभक्ति के उझायकों में विशिष्ट माना जाता है। इसके अतिरिक्त इनका कोई वृत्त ज्ञात नहीं। | ||
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Latest revision as of 14:42, 6 July 2017
अलबेली अलि रीतिकालीन कवि थे। इनका कविता काल विक्रम की 18वीं शताब्दी का अंतिम भाग आता है। यह विष्णुस्वामी सम्प्रदाय के आचार्य 'वंशी अलि' के शिष्य थे। वंशी अलि अपनी उपासनापद्धति को नवीन रूप देने वाले महात्मा के रूप में प्रसिद्ध रहे हैं। ये विष्णु स्वामी की दार्शनिक विचारधारा से प्रभावित थे। यह राधा-कृष्ण के भक्त थे। अलबेली अलि संस्कृत के परंपरागत विद्वान् थे किंतु इन्हे ब्रजभक्ति के उझायकों में विशिष्ट माना जाता है। इसके अतिरिक्त इनका कोई वृत्त ज्ञात नहीं।
रचनाएँ
ये भाषा के सत्कवि होने के अतिरिक्त संस्कृत में भी सुंदर रचना करते थे जिसका प्रमाण इनका लिखा 'श्रीस्त्रोत' है। इन्होंने ब्रजभाषा में 'समय प्रबन्ध पदावली' की रचना की जिसमें 313 पद हैं। इस ग्रंथ में राधाकृष्ण की रूपमाधुरी का अति सरस रूप में वर्णन किया गया है। ब्रज में उनके कई पद बड़े चाव से गाए जाते हैं। नीचे कुछ पद उध्दृत किए जाते हैं-
लाल तेरे लोभी लोलुप नैन।
केहि रस छकनि छके हौ छबीले मानत नाहिन चैन
नींद नैन घुरि घुरि आवत अति, घोरि रही कछु नैन
अलबेली अलि रस के रसिया, कत बिसरत ये बैन
बने नवल प्रिय प्यारी।
सरद रैन उजियारी
सरद रैन सुखदैन मैनमय जमुनातीर सुहायो।
सकल कलापूरन ससि सीतल महिमंडल पर आयो
अतिसय सरस सुगंधा मंद गति बहत पवन रुचिकारी।
नव नव रूप नवल नव जोबन बने नवल पिय प्यारी[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अलबेली अलि (हिन्दी) (एच टी एम) हिन्दी डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 5 अप्रैल, 2011।
आचार्य, रामचंद्र शुक्ल “प्रकरण 3”, हिन्दी साहित्य का इतिहास (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: कमल प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ सं. 245।
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