एक इमरोज़ चाहिए -नीलम प्रभा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Neelam-Prabha.j...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
Line 43: Line 43:
तो कैसे कह दिया ... कि आगे कुछ नहीं !  
तो कैसे कह दिया ... कि आगे कुछ नहीं !  
और बहस की दरकार तो पड़ेगी ना !
और बहस की दरकार तो पड़ेगी ना !
हम नहीं चाहेंगे  
हम नहीं चाहेंगे  
कि कोई भी और गुनाह करें  
कि कोई भी और गुनाह करें  
पर मोहब्बत !  
पर मोहब्बत !  

Latest revision as of 10:56, 27 January 2022

एक इमरोज़ चाहिए -नीलम प्रभा
कवि नीलम प्रभा
जन्म 12 जुलाई
जन्म स्थान बक्सर, बिहार
अन्य नीलम प्रभा की वर्ष 1971 से वर्ष 1979 तक रचनाएं साप्ताहिक हिंदुस्तान, कादम्बिनी, धर्मयुग में नियमित प्रकाशित हुई।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
नीलम प्रभा की रचनाएँ

उन्होंने कहा,
मोहब्बत गुनाह है, मत कर
हमने पूछा,
जो गुनाह है तो इसमें इतनी कशिश क्यों है ?
क्या हर गुनाह में कशिश होती है ?
उन्होंने कहा,
बहस की दरकार नहीं है
जो कह दिया, सो कह दिया.. आगे कुछ नहीं
हमने कहा,
आगे तो मोहब्बत है
तो कैसे कह दिया ... कि आगे कुछ नहीं !
और बहस की दरकार तो पड़ेगी ना !
हम नहीं चाहेंगे
कि कोई भी और गुनाह करें
पर मोहब्बत !
वाइज़ इसे खुदा कहते हैं
और आप गुनाह ...
हम आपकी बात मान भी लें
फिर भी, इस गुनाह में खुदा होता है...
आपको ज़माने भर की बातें मालूम हैं
तो यह कैसे नहीं पता है ?
आप हमें फटकारें, पीटें या जलावतन कर दें
आपका हक है, हमें कुबूल होगा
मगर,
यह गुनाह तो हमें करना है ...!
हम भी तो जानें कि
आखिर कोई कैसे -
नैना मिलाय के सब छीन लेता है
माशूक की राह के कांटे
कोई पलकों से किस तरह बीन लेता है,
किनके लहू से चनाब का पानी लाल हुआ
हीर के ख्याल में रांझा क्यों बेहाल हुआ
कोई अकेले में किसी से क्या बात करता है
किसी ज़ारा की खातिर कोई वीर
कैसे जां निसार करता है
हमें भी अपनी ज़ुबान में
हिज्र का सोज़ चाहिए
हम गुजरांवाला की अमृता ना हों, ना सही
पर किसी का क्या जाएगा
जो हम कहें कि इसी जनम में
(अगला जनम किसने जाना है)
हमें भी साहिब, एक इमरोज़ चाहिए।

नीलम प्रभा

संबंधित लेख