मंखक: Difference between revisions
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Revision as of 08:36, 19 April 2011
- मंखक के व्याकरण, साहित्य, वैद्यक, ज्योतिष तथा अन्य लक्षण ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त किया था। आचार्य रुय्यक उनके गुरु थे। गुरु के अलंकारसर्वस्व ग्रंथ पर मंखक ने वृत्ति लिखी थी।
- मंखक के पितामह मन्मथ बड़े शिव भक्त थे। पिता विश्ववर्त भी उसी प्रकार दानी, यशस्वी एवं शिव भक्त थे। वे कश्मीर नरेश सुस्सल के यहाँ राजवैद्य तथा सभाकवि थे। मंखक से बड़े तीन भाई थे श्रृंगार, भृंग तथा लंक या अलंकार। तीनों महाराज सुस्सल के यहाँ उच्च पद पर प्रतिष्ठित थे।
जन्म
- महाकवि मंखक का जन्म प्रवरपुर में हुआ था जो कश्मीर में सिंधु और वितस्ता के संगम पर महाराज प्रवरसेन द्वारा बसाया गया था। यह नगर वर्तमान श्रीनगर से 125 मील उत्तर पूर्व की ओर है।
- महाराज सुस्सल के पुत्र जयसिंह ने मंखक को 'प्रजापालन-कार्य-पुरुष' अर्थात धर्माधिकारी बनाया था। जयसिंह का सिंहासनारोहण 1127 ई. में हुआ। मंखक की जन्मतिथि 1100 ई. (1157 विक्रमी संवत्) के आसपास मानी जा सकती है। एक अन्य प्रमाण से भी यही निर्णय निकलता है। मंखकोश की टीका का, जो स्वयं मंखक की है, उपयोग जैन आचार्य महेंद्र सूरि ने अपने गुरु हेमचंद्र के अनेकार्थ संग्रह (1180 ई.) की अनेकार्थ कैरवकौमुदी नामक स्वरचित टीका में किया है। अत: इस टीका के 20, 25 वर्ष पूर्व अवश्य मंखकोश बन चुका होगा। इस प्रकार मंखक का समय 1100 से 1160 ई. तक माना जा सकता है।
कृतियाँ
मंखक की दो कृतियाँ प्रसिद्ध हैं:
- श्रीकंठचरित् महाकाव्य
- मंखकोश।
- श्रीकंठचरित् महाकाव्य
श्रीकंठचरित् 25 सर्गो का ललित महाकाव्य है। श्रीकंठचरित् के अंतिम सर्ग में कवि ने अपना, अपने वंश का तथा अपने समकालिक अन्य विशिष्ट कवियों एवं नरेशों का सुंदर परिचय दिया है। अपने महाकाव्य को उन्होंने अपने बड़े भाई अलंकार की विद्वत्सभा में सुनाया था। उस सभा में उस समय कान्यकुब्जाधिपति गोविंदचंद (1120 ई.) के राजपूत महाकवि सुहल भी उपस्थित थे। महाकाव्य का कथानक अति स्वल्प होते हुए भी कवि ने काव्य संबंधी अन्य विषयों के द्वारा अपनी कल्पना शक्ति से उसका इतना विस्तार कर दिया है।
- मखकोश
प्रसिद्ध नानार्थ पदों का संग्रह है। कुल 1007 श्लोकों में 2256 नानार्थपदों का निरूपण किया गया है।
अलंकारसर्वस्व
समुद्रबंध आदि दक्षिण के विद्वान टीकाकारों ने मंखक को ही 'अलंकारसर्वस्व' का भी कर्ता माना है। किंतु मखक के ही भतीजे, बड़े भाई श्रृंगार के पुत्र जयरथ ने, जो 'अलंकारसर्वस्व' के यशस्वी टीकाकार हैं, उसे आचार्य रुय्यक की कृति कहा है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- विश्व कोश (खण्ड 9) पेज न. 92-93, चंडिकाप्रसाद शुक्ल